जनसंपर्क संचालनालय में एक बुजुर्ग पत्रकार की मौतःआखिर जिम्मेदार कौन मौत के उपरांत अब मुआवजे का मरहम-सलमान

भोपाल। आखिरकार जिसका अंदेशा था वही हुआ जिस जनंसम्पर्क विभाग को सरकार ने अपना चेहरा चमकाने की जिम्मेदारी देकर करोड़ो रुपए सालाना का बजट दिया। उसी विभाग ने अपनी दूषित कार्यप्रणाली से सरकार ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के मुंह पर भी कालिख पुतवा दी। इस मामले में वैसे तो वजह साफ है 2 साल से विज्ञापन के पेमेंट का भुगतान नहीं होना और गत 15 अगस्त 2020 को जारी हुआ विज्ञापन पीड़ित पत्रकार को ना मिलना लेकिन जनसंपर्क विभाग के निकम्मे, नकारा, वरिष्ठ अधिकारी कर्मचारी इस मामले में अब तरह-तरह की दलीलें देकर अपना बचाव करेंगे और जनसंपर्क आयुक्त और सरकार के दामाद संचालक जनसंपर्क ने तो अपना दामन बचाने के लिए तुरन्त आनन-फानन में मृतक के परिवार को 4 लाख रुपये आर्थिक सहायता देने की घोषणा कर इतिश्री भी कर ली, पत्रकार की मौत पर अब मुआवजे का भी लगाया जा रहा है।
और पत्रकार फड़फड़ा कर दम तोड़ दिया
कितने अफसोस की बात है कि एक 70 वर्षीय बुजुर्ग पत्रकार योगेश दीक्षित ने जिसे उम्र के अंतिम पड़ाव में अपने घर बैठकर शांति से भजन-कीर्तन करना था। वह अपनी मासिक पत्रिका शुभ ज्योत्सना को मिले 20-20 हजार यानी मात्र 40000 के विज्ञापनों के भुगतान के लिए पिछले 2 वर्षों से बिना किसी तरह की वाहन सुविधा के अपने घर से लगभग 30 किलोमीटर चक्कर लगाकर जनसंपर्क विभाग के कर्णधारों के दरवाजे खटखटा कर अपने पेमेंट की गुहार लगातार लगा रहा था, लेकिन किसी तरह की दान दक्षिणा/चढ़ोत्तरी पत्रकार नहीं कर पा रहा था, उसे जनसंपर्क शाखा के लेखा अधिकारी बजट आभाव का रोना रोकर लगातार टरका रहे थे, लेकिन आज अपनी गर्दन फंसती देख 40 हजार की जगह पल भर में ही 4 लाख देने की घोषणा कर दी।
दलालों की पौ बाराह जान से गया वह बेचारा
बात दरअसल यह है कि पत्रकारिता जगत में सुधार और वास्तविक पत्रकारों को उनका हक मिले इस मामले में कोई ठोस पालिसी या कार्यवाही करने की मंशा सरकार की भी नहीं लगती है यही कारण है कि मध्यप्रदेश का पत्रकारिता क्षेत्र लगातार पंगु होता जा रहा है। जिन लोगों को खबर लिखना तो दूर कलम पकड़कर अपना हस्ताक्षर करना भी नहीं आया है वे और उनका पूरा परिवार दर्जनों अखबार निकालता है, उनसे आप क्या उम्मीद कर सकते हैं। हमारा संगठन IFWJ मध्यप्रदेश इकाई इस मामले में विगत 3 वर्षों से व्यवस्था में सुधार और वास्तविक पत्रकारों का सत्यापन कर उन्हें उनका वाजिब हक दिलाने का प्रयास कर रहा है लेकिन कहावत है ना कि बरबाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है। यहां तो हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा। ज्ञात हो कि भारत सरकार के आरएनआई विभाग में मध्यप्रदेश से प्रकाशित होने वाले लगभग 12000 समाचार पत्र पत्रिकाएं पंजीकृत हैं, जिन्हें जनसंपर्क विभाग मध्यप्रदेश ने दो हिस्सों में बांट रखा है एक सूची में लगभग 500 से 600 वे समाचार पत्र पत्रिकाएं हैं जो नियमित/वार्षिक सूची कहलाती हैं जिन्हें बिना किसी तरह का आवेदन दिए हर एक माह छोड़कर यानी साल में 6 बार (डिस्प्ले) विज्ञापन निर्धारित समय व दिनांक को निर्धारित राशि के प्राप्त हो जाते हैं। यानी वीआईपी सूची और दूसरी वे सामान्य निम्न स्तरीय छोटे मझोले समाचार पत्र पत्रिकाएं हैं जिन्हें जनसंपर्क विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी जैसे मानों उन्हें चिंदी चोर की श्रेणी में मानते हैं उनकी संख्या लगभग 6000 से 8000 के आसपास है, जिन्हें साल में चार बार 26 जनवरी, अप्रैल, 15 अगस्त और 1 नवंबर को एक निर्धारित राशि का विज्ञापन जारी किया जाता है। यही असल विवाद की जड़ है चाय वाले, पान वाले, मूंगफली वाले, ऑटोवाले, मेकानिक की दुकान वाले और ऐसे ही छोटे-मोटे कार्य करने वाले लोगों ने अपनी अतिरिक्त आय का साधन बना लिया है और बिना मेहनत किये माल मिलता देख जब लालच बढ़ी तो एक ही घर से 20-20 और 25-25 अखबार निकलने लगे इन जैसे लोगों ने पत्रकारिता के क्षेत्र को दूषित किया है। भ्रष्ट अधिकारी/कर्मचारियों को का इन्हें खुला संरक्षण प्राप्त है।
मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन
जैसा कि सबको पता है कि हर तीसरे महीने होने वाली इस बंदरबांट में जनसंपर्क विभाग लगभग 6 से 8 हजार निम्न स्तरीय छोटे मझोले समाचार पत्र पत्रिकाओं को विज्ञापन देता है जिसमें 20 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक जमकर दलाली होती है। और लगभग एक दर्जन दलाल ही लगभग 2 हजार समाचार पत्र पत्रिकाओं के विज्ञापन का पैसा कलेक्ट कर थौक के भाव में संबंधित अधिकारी कर्मचारियों तक पहुंचाते हैं। बल्कि करोड़ों रुपए बंदरबांट होती है अब वही कहने वाली बात आ गई है कि
दूध देने वाली गाय की तो लात भी सहनी पड़ती है
तो अपने ऊपर कुल्हाड़ी मारकर अवस्था को कौन सुधारना चाहेगा और इसी अव्यवस्था के शिकार अकसर इमानदार मेहन्ती और वास्तविक पत्रकार स्वर्गीय दीक्षित जैसे पत्रकार होते हैं । इसे विडम्बना नहीं एक षड्यंत्र कहा जाएगा कि जिस व्यक्ति को लगातार चक्कर लगाने के बाद भी 2 साल से पिछले विज्ञापनों के पेमेंट का भुगतान नहीं हो पाया था। (उसके घरवालों के कहे अनुसार)विगत 15 अगस्त को जारी हुआ विज्ञापन भी नहीं मिल पाया था जिसके लिए वे रोज-रोज जनसंपर्क विभाग के चक्कर काट कर पेमेंट नहीं तो कम से कम विज्ञापन देने की गुहार लगा रहे थे और आज उसकी हिम्मत टूट गई जब उसे चारों ओर से निराशा हाथ लगी तो उसने घबराहट और बेचैनी में दम तोड़ दिया जिसे डॉक्टर हार्ट अटैक से मौत होना बता रहे हैं ।
माँग है कि मृत्क पत्रकार को प्रताणित करने के इस मामले में जितने जितने भी अघिकारी कर्मचारी दोषी है उन सब पर गेर इरादतन हत्या का मामला दर्ज होना चाहिये
साथियों यह मेरे अकेले की लड़ाई नहीं है आप सब की लड़ाई है इस अव्यवस्था और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए आप की ओर से मैं संघर्ष कर रहा हूं जरूरी नहीं कि आप मेरे कंधे से कंधा मिलाकर लड़े बल्कि जहां हैं जैसे हैं वहीं से साथ देकर इस संघर्ष को आगे बढ़ाने का प्रयास करें । हमारे संगठन IFWJ मध्य प्रदेश इकाई ने इस अव्यवस्था को व्यवस्था में बदलने के लिए क्रमबद्ध एक सीरियल शुरू की है जिसकी आवाज सोशल मीडिया के माध्यम से प्रदेश व देश ही नहीं बल्कि संसार के कोने कोने तक पहुँचाने में अपना समर्थन और मार्गदर्शन देंवे। उक्ताशय के विचार सलमान खान
प्रदेश अध्यक्ष
IFWJ मध्य इकाई ने व्यक्त किया।