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बंद पड़ी डूमरकछार भूमिगत खदान पुनः प्रारंभ किया जाए

राष्ट्र को कोयला और क्षेत्रीय लोगों को मिल सके रोजगार

डूमरकछार/राजनगर कालरी। कोयला ऊर्जा का एक अच्छा और बड़ा स्त्रोत है साथ ही देश में कोयले की आवश्यकता भी है,कई दशक पहले कोयला उत्पादन के लिए तकनीकी का विस्तार एवं विकास उतना नहीं हो पाया था जितना आज है, इसी वजह से कई ऐसी कोयला खदाने है जो उस वक्त खुली तो लेकिन मानव संसाधन के बल पर कोयला खदाने जितनी चल सकती थी उतनी चली,यंत्रों और मशीनरी का उपयोग उस जमाने में ना हो पाने के कारण उन खदानों से कोयले की सम्पूर्ण निकासी नहीं की जा सकी,फलस्वरूप आज भी उन क्षेत्रों में कोयले का भंडार रिजर्व है, ऐसा ही एक कोयला खदान एसईसीएल उपक्रम के हसदेव क्षेत्र के राजनगर उपक्षेत्र के डूमर कछार में है जहां 1960 से 1964 के बीच में कोयले का उत्पादन किया गया, लेकिनअत्याधुनिक तकनीकी के मशीनों के उस वक्त ना हो पाने के कारण कोयले का पूरी तरीके से उत्पादन नहीं किया जा सका था। प्राप्त जानकारी के अनुसार उस समय डूमरकछार खदान में पानी भर जाने के कारण पानी निकासी की उतनी व्यवस्था नहीं थी इसलिए प्रबंधन ने खदान को बंद करके मानव श्रम शक्ति को दो नंबर खदान में श्रमिकों को स्थानांतरित कर दिया, तकनीकी कारणों से कोयला तो नहीं निकल गया परंतु श्रम शक्ति का स्थानांतरण दूसरे खदान में कर लिया गया परंतु ऐसा अंदेशा है कि आज भी डूमरकछार खदान से लाखों टन कोयला संधारित है जिसका उत्पादन किया जा सकता है। इसी विषय को लेकर कोयलांचल क्षेत्र के समाजसेवी, नगर परिषद डूमर कछार के अध्यक्ष एवं जिला योजना समिति के सदस्य डॉ. सुनील कुमार चौरसिया ने एसईसीएल के अध्यक्ष सहप्रबंध निदेशक और हसदेव क्षेत्र के महाप्रबंधक को पत्र लिखकर डूमरकछार बंद पड़ी माइंस को पुनः प्रारंभ किए जाने का आग्रह किया है ताकि जहां एक ओर राष्ट्र को कोयला मिल सके वहीं दूसरी तरफ क्षेत्र के स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल सके।
श्री चौरसिया ने अपने पत्र में प्रबंधन का ध्यान आकर्षित कराते हुए उल्लेख किया है कि उस वक्त खदान में पानी की मात्रा अधिक होने के कारण पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था न होने के कारण डूमरकछार खदान को बंद कर दिया गया था, डूमरकछार भूमिगत खदान में आज भी करोड़ों की राष्ट्रीय संपदा है,राष्ट्र को कोयले की आवश्यकता और क्षेत्र में बेरोजगारी को दूर करने के लिए बन्द पड़ी डूमरकछार खदान को पुनः प्रारंभ करके जनहित/राष्ट्रहित में कोयले का उत्पादन किये जाने का आग्रह किया है।

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