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मजदूरों के साथ कोलइंडिया कर रही सौतेला ब्यवहार

कैंसर जैसी घातक बिमारी से मौत पर भी नही मिल रहा मिलने वाला क्षतिपूर्ति

डीजीएमएस के नियमों का भी कर रही उलंघन- अख्तर

अनूपपुर-कोल इंडिया लिमिटेड और उसकी विभिन्न उपक्रमों में सैकड़ों श्रमिकों को खनन कार्यों से संबंधित ब्यवसायिक बीमारियों में क्षतिपूर्ति नहीं दी जा रही है। ज्ञात हो कि करोड़ों रुपये बचाने में कोल इंडिया लगी हुई है,जबकि देश के कानून की स्पष्ट मंशा मजदूरों को सहायता पहुंचाने की है।
कर्मकार क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 में नोटिफाइड डिज़िजेज़ को चोट और प्राणघातक दुर्घटना तक माना गया और अधिनियम की धारा 2 के अनुरूप खदान मजदूरों को शेड्यूल 2 के उपबंध 5 के अनुसार मुआवजा का अधिकारी माना गया है। शेड्यूल 3 के पार्ट सी में ब्यवसायिक बिमारियों का उल्लेख है, जिसमें समय -समय पर भारत सरकार द्वारा गजट नोटिफिकेशन के द्वारा ब्यवसायिक बिमारियों को जोड़ा जाता रहा है।
सिलिकोसिस को भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के नोटिफिकेशन न.
MI – 41 (74) दिनांक 18 दिसंबर 1956 के द्वारा ब्यवसायिक बिमारी माना गया था। इसी प्रकार नोटिफिकेशन न. 2521 दिनांक 26 जून 1986 को एस्बेस्टोसिस और लंग कैंसर, स्टमक कैंसर,पेलुरा में कैंसर और मेसोथियोलोमा को तथा नोटिफिकेशन न. 399 दिनांक 21 फरवरी 2011 से शोर के कान में सुनने की क्षमता में हानि आदि को भी ब्यवसायिक बिमारी माना है।

अख़्तर जावेद उस्मानी त्रिपक्षीय सुरक्षा समिति कोल इंडिया लिमिटेड में (हिन्द मजदूर सभा ) के प्रतिनिधि ने बताया कि भारत में क्षतिपूर्ति की राशि अत्यंत अल्प है । 18 साल के मजदूर की मृत्यु की दशा में अधिकतम 18 लाख 11 हजार चालीस और 60 साल के मजदूर की मृत्यु की दशा में 7 लाख 94 हज़ार नौ सौ साठ रुपये क्षतिपूर्ति मिलती है। मजदूरों की मृत्यु पर मिलने वाला 15 लाख की अनुग्रह राशि में ब्यवसायिक बिमारियों से मृत्यु में नहीं दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि 2018 में कोल इंडिया लिमिटेड की त्रिपक्षीय सुरक्षा समिति में हिन्द मजदूर सभा की ओर से नियुक्त किये जाने के बाद उन्होंने कोल इंडिया के विभिन्न उपक्रमों भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, सेन्ट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड तथा साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की खदानों में जाकर यह देखा कि हर खदान मे औसतन 5 आदमी मशीनों के शोर से सुनने की क्षमता को खो रहे हैं परंतु उसी शोर में काम करने को ये मजदूर मजबूर हैं। फेफड़ों के कैन्सर में पिछले चार सालों में बीसीसीएल में 57, सीसीएल में पांच और एसईसीएल में 2023 में 13 स्थायी मजदूर पीड़ित हैं। लेकिन बीमारी ग्रस्त मजदूरों को कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी जा रही है, न ही डायरेक्टर जनरल आफ माइंस सेफ्टी को माइन्स एक्ट 1952 की धारा 25 के अनुरूप सूचित किया जा रहा है। एसईसीएल में 339 विभिन्न प्रकार के कैन्सर के मरीज हैं जिनमें 115 कर्मचारी और शेष उनके आश्रित है। 07 अधिकारी भी कैन्सर से पीड़ित हैं,इनमें 13 फेफड़ों के कैन्सर से पीड़ित हैं।
अख़्तर जावेद उस्मानी ने आगे कहा कि 115 कर्मचारियों में से 13 लंग कैंसर के प्रकरण कुल संख्या का 8.85% है जो भयावह है।
उत्पादन की होड़ में जान की परवाह किसी को नही है, बेतहाशा दुर्घटनाये बढ़ रही है। जब मजदूर की जान की कीमत अधिकतम 18 लाख हो तो अरबों रुपये प्रतिवर्ष लाभ कमाने वाली कंपनियों को फ़र्क नहीं पड़ता है। ऐसे में खानों में शोर से, ब्लास्टिंग की नाक वेबस् से पैदा बहरेपन और खानों कोयले की धूल के शिकार कैन्सर मरीज जीवन की गुणवत्ता को खो कर कैन्सर से तिल- तिल मर रहे स्थायी मजदूरों को कम्पेनसेशन तक नहीं दिया जा रहा है।
अगर औसत में 10 लाख कम्पेनसेशन माने तो ये तीन कंपनियों ने 7.5 करोड़ कम्पेनसेशन के बचा लिये और 1986 से अगर डेटा का अध्ययन किया जाए तो पता चलेगा कि क्षतिपूर्ति अरबों में पहुँच जायेगा।
कोल इंडिया लिमिटेड की एनसीएल,डब्लूसीएल, सीएमपीडीआईएल,एमसीएल और ईसीएल का विवरण अभी मिल पाना शेष है, ठेकेदारी मजदूरों की बीमारियों और उनके इलाज का डेटा कोल कंपनियां रखती ही नहीं कहीं भी उनके साथ मनुष्य मान कर ब्यवहार भी नहीं किया जा रहा है।
वेज बोर्ड में चोट लगने पर पूरा वेतन देने का प्रावधान है। लेकिन लंग कैंसर मरीजों को पूरे कोल इंडिया लिमिटेड में स्पेशल लीव के नाम पर आधा वेतन दिया जा रहा है। जब महारत्न और मिनी रत्न पब्लिक सेक्टर कंपनियों जिनका मालिकाना भारत सरकार के पास है उनका ये हाल है तो प्राईवेट मालिकों के ब्यवहार के बारे में सोच कर दिल दहल उठता है।
1952 से आज तक कोयला खदानों में कभी आक्यूपेशनल हेल्थ सर्वे नहीं कराया गया है जबकि मध्य प्रदेश,राजस्थान की खानों और गुजरात के मोतियों की पालिश करने वाले मजदूरों की सिलिकोसिस से दुर्दशा सामने के बाद डीजीएम एस ने धातु और पत्थर की खानों में माइन्स एक्ट 1952 की धारा 9(अ) के तहत आक्यूपेशनल हेल्थ सर्वे कराया और सैकड़ों की संख्या में सिलिकोसिस के मरीजों को चिन्हित किया है।
अख़्तर जावेद उस्मानी ने इस मुद्दे को प्रधानमंत्री, कोयला मंत्री, श्रम मंत्री भारत सरकार को सूचना देते हुए डीजीएमएस और चेयरमैन कोल इंडिया लिमिटेड से मांग की है कि भारत सरकार के 1986 और 2011 की अधिसूचना के अनुसार सभी पीड़ित श्रमिकों को क्षतिपूर्ति दी जाये। वेज बोर्ड के समझौतों के अनुरूप ब्यवसायिक बीमारियों को चोट मान कर इंज्यूरी आन ड्यूटी जैसा न्यूमोकोनियोसिस के केस में किया जाता है उन्हें पूरा वेतन देने तथा मेडिकल अनफिट घोषित करने की मांग की है। मजदूरों के स्वास्थ और सुरक्षा के लिये हिन्द मजदूर सभा कृतसंकल्पित है और देश के कानूनों के तहत मजदूरों को उनका हक़ दिलाने के लिये हर लड़ाई लड़ेगी।
कुछ दिनों तक न्याय ना मिल पाने पर न्याय की प्रतीक्षा के बाद यह लड़ाई कानूनी तौर तरीकों के साथ सड़कों पर भी लड़ी जायेगी, ताकि कोल इंडिया में काम करने वाले मजदूरों को उनका हक उनको मिल सके।

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