आर्टिकल

चाणक्यत्व को चुनौती

डॉ.राकेश रंजन

कॉन्फिडेंस हो तो संजय राउत सरीखा। आखिरकार मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही बनेगा। शिवसेना का मजाक उड़ाने वालों पर हंसने की बारी अब भाजपा विरोधियों की है। संजय राउत ने सच कहा था कि जिस-जिस पर जग हंसा है, उसी ने इतिहास रचा है। कहा तो नितिन गडकरी ने भी सही था कि क्रिकेट और राजनीति में कई बार जिसकी जीत तय नजर आती है वो हार जाता है । अजीत पवार के समर्थन के बलबूते मैदान मारने का मुगालता पालने वाली बीजेपी भी बाजी हार चुकी है। हड़बड़ी में ब्याह रचाने पर सिंदूर कनपटी पर लगना ही था। 80 घंटे में अभी हाथों पर लगी सत्ता की मेंहदी सूख भी नहीं पाई थी कि फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा। दिल शाद था कि फूल खिलेंगे बहार में, मारा गया गरीब इसी ऐतबार में। इस्तीफा देने से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना की बेवफाई गिना कर उस पर लानत भेजी। लेकिन देवेंद्र बाबू ये भूल गए कि ये सियासत है जहां नैन मटक्का किसी के साथ, फेरे किसी के साथ और सुहागरात किसी और के साथ मनाई जाती है। वैसे भाजपा किस मुंह से नैतिकता की दुहाई दे रही है? वो खुद उस अजीत पवार संग रंगरेलियां मनाने जा रही थी जिसके भ्रष्टाचारी चरित्र पर पहले वही उंगली उठाती आ रही थी।

वैसे महाराष्ट्र में कोई किसी पर उंगली उठाने लायक बचा नहीं है। अवसरवादिता के हमाम में सब नंगे खड़े हैं। दलील की हथेलियों की आड़ लगाकर अपने अधोअंगों को ढकने की कोशिश बेकार है। सत्ता के समर में किसी की जीत नहीं बल्कि सिर्फ हार हुई है। और हारी केवल जनता है। जिस शिवसेना ने भाजपा संग चुनाव लड़कर कांग्रेस-एनसीपी को गरिया कर लोगों से वोट मांगे, वो अब उन्हीं के साथ गलबहियां डालकर सत्तासुख भोगने जा रही है। बेशर्मी की हद ये कि ये धत्कर्म बाला साहब से किए गए वादे को निभाने की आड़ लेकर किया जा रहा है। अपने पिता से शिवसैनिक को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने के किए गए वादे की कीमत उद्धव ने बाला साहब की अर्जित हिंदुत्व की पूंजी को गंवा कर चुकाई है। इसे पुत्रमोह की मजबूरी समझिए या कूटनीतिक जरूरत, उद्धव उसी कांग्रेस के साथ खड़े हो गए जिसे बाला साहब ‘हिजड़ों की पार्टी’ कहते थे। मातोश्री के प्रति निष्ठा की सौगंध खाने वाले शिवसैनिकों को ‘माताश्री’ के नाम की शपथ लेते देखना वाकई हाहाकारी है। शिवसेना ने कुछ पाने की एवज में क्या खोया है, इसका अहसास उसे तब होगा, जब उसके पास खोने को कुछ बचेगा नहीं। कांग्रेस का क्या है, उसके पास तो खोने को वैसे भी कुछ नहीं बचा है। खोया तो भाजपा ने भी काफी कुछ है। मुख्यमंत्री की कुर्सी की खातिर शिवसेना के दुश्मन पाले से मिल जाने से भाजपा को जो सहानुभित हासिल हुई थी, उसे उसने अजीत पवार को गले लगाकर गंवा दिया है। अधर्म से लड़ने के लिए अधर्मियों का साथ लेने की मजबूरी को युद्ध की कृष्णनीति बताकर भाजपा समर्थक लाख जस्टिफाई करें, हकीकत यही है कि महाराष्ट्र की महाभारत में उसकी काफी भद्द पिटी है। शह-मात के खेल में फिलहाल शाह को शह मिली है।

विरोधियों ने चाणक्यत्व को चुनौती दी है। अमित शाह की ये कहकर खिल्ली उड़ाई जा रही है कि टकला होने से कोई चाणक्य नहीं बन जाता। अब देखना है कि मोटा भाई इस अपमान का बदला कैसे लेते हैं? शाह की कार्यशैली बताती है कि ‘सब कुछ करने का लेकिन मोटा भाई का ईगो हर्ट नहीं करने का।‘ अमित शाह के समर्थक तो दावा कर भी रहे हैं कि शेर ने शिकार के लिए दो कदम पीछे खींचा है। उधर उद्धव ने भी आगाह कर दिया है कि बीजेपी को अब बताएंगे कि शिवसेना क्या चीज है। भाजपा ने अभी उसकी दोस्ती देखी है, अब उसे दुश्मनी दिखाएंगे। महाराष्ट्र की महाभारत का 19वां अध्याय लिखा जाना अभी बाकी है।

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