
जिम्मेदार अधिकारी मौन, पार्किंग व्यवस्था में हुई जबरन वसूली
जमुना। महाशिवरात्रि पर्व पर पुरातात्विक स्थल शिव लहरा धाम में प्रति वर्ष की भांति दो दिवसीय मेला का आयोजन हुआ, लेकिन मेला समापन के बाद पूरे शिव लहरा घाट नदी में कचरे का अंबार लगा हुआ है। मंदिर के आसपास से लेकर पूरे परिसर में पन्नी डिस्पोजल कागज कार्टूनक के कचरे बिखरे पड़े हैं जो हवा के साथ उड़ कर नदी में जा रहा है जिसकी सुध किसी को नहीं है। वैसे यह कोई पहली बार नहीं हुआ है बीते कई वर्षों से मेला में स्थानीय ग्राम पंचायत दार सागर द्वारा बैठ की पार्किंग के नाम पर तो जमकर वसूली करते हैं, लेकिन मेला परिसर के समापन के बाद वहां की साफ सफाई कराना भी मुनासिब नहीं समझते जब सारे देश में स्वच्छता अभियान चल रहा है, ऐसी स्थिति में हमारे धार्मिक स्थल पुरातात्विक स्थल जहां लाखों की तादाद में लोग श्रद्धा भक्ति भाव से आते हैं वहां भी सफाई ना हो तो किसे जिम्मेदार ठहराया जाए स्थानीय पंचायत को या प्रशासन को।
मेला में सुविधाओं का अभाव
दो दिवसीय मेले में प्रशासन ने अधिकारियों की जिम्मेदारी तय तो की, लेकिन यहां पर आने वाले दर्शनार्थियों दुकानदारों के लिए किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं थी यहां मेला में न तो पानी की व्यवस्था थी न सफाई की व्यवस्था थी यहां तक कि मुख्य मार्ग से लगभग 2 कि.मी. मंदिर जाने वाले मार्ग तक को सही नहीं कराया गया। मेला परिसर में पसान नगर पालिका द्वारा पानी टैंकर फायर ब्रिगेड की सुविधा मुहैया कराई गई सुरक्षा के लिए भालूमाड़ा पुलिस रही।
मेला में पंचायत द्वारा मनमानी वसूली
शिव लहरा में लगने वाला मेला वैसे तो ग्राम पंचायत दार सागर में आता है जिसकी जवाबदेही बनती है लेकिन वर्षों से देखा जा रहा है कि मेला में पंचायत के लोग केवल बैठकी वसूली पार्किंग वसूली के नाम पर जबरदस्ती करते हैं बाहर से आए छोटे-छोटे दुकानदारों से जबरन वसूली करना बाहर से आए यात्रियों मोटरसाइकिल चालकों के साथ जबरदस्ती वसूली करना इनका पेशा बन गया है। मंदिर जाने वाले और मेला में प्रवेश करने वाले मुख्य स्थान पर पंचायत के लोग रस्सियां बांधकर खड़े होते हैं और हर आने-जाने वाले वाहन चालकों से जबरदस्ती पार्किंग करने के लिए दबाव डाला जाता है और यदि कोई मना करता है तो उनके साथ अभद्र व्यवहार होता है चुकी मेला में लोग अपने बच्चों और परिवार के साथ दर्शन करने घूमने के उद्देश्य से आते हैं, इस कारण से इनकी मनमानी को वह लोग सहज ही स्वीकार करते हुए शांत रह जाते हैं। यही कारण है कि शिव लहरा मेला में दिन प्रतिदिन बाहर के दुकानदारों का आना धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। मेला में किसी प्रकार की प्रबंधन समिति का न होना मेला में प्रशासनिक देखरेख व निर्धारित बैठ की व पार्किंग किराया का निर्धारण न होने से पंचायत द्वारा मनमानी तौर से गांव के ही 30 से 35 लोगों का समूह मेला में वसूली करते हैं जहां सबसे ज्यादा शिकायत वाहन चालकों की होती है। मेला में दोपहिया वाहनों का 20 रूपए, तथा चार पहिया वाहनों का 50 से 100 का किराया लिया जाता है। आखिर यह दर किसने स्वीकृत किया जिले के कोतमा अनूपपुर रेलवे स्टेशन में पार्किंग जो कि व्यवसायिक है वहां भी चार पहिया का किराया मात्र 20 है तब मेला में मनमाना वसूली क्यों की जाती है।
वसूली में बंदरबांट
मेला में किराया निर्धारण न होने वसूली की देखरेख न होने से पंचायत के लोग यह भी नहीं बताते कि कितनी वसूली हुई वर्तमान में दो दिवसीय मेले में वसूली की जानकारी मेला प्रभारी एसडीएम कोतमा से पूछने पर उन्होंने भी पंचायत सचिव से बात करने को कहा पंचायत सचिव से बात किया तो बताया कि गांव व पंचायत के लोग ही सब किए हैं अभी कितनी वसूली आई पता नहीं है। शिव लहरा मेला भले ही लोगों के लिए आस्था संस्कृति प्राचीन धरोहर का प्रतीक हो,लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा व नजरअंदाज करने के कारण ही पंचायत के लिए यह मेला नहीं, बल्कि बाजार बन गया है जहां केवल दुकानें होती हैं और उन्हें खरीदने आने वाले ग्राहक जिससे बैठकी वसूली वाहन पार्किंग वसूली करना ही इनका मुख्य धेय है।
शिव लहरा मेला के लिए भी बने प्रबंधन समिति मेला समिति
जिले के अमरकंटक में प्रशासनिक व्यवस्था की देखरेख में सात दिवसीय भव्य मेले का आयोजन होता है और वहां लोगों को सुविधाएं मिलती हैं। शिव लहरा धाम में भी यदि मेला के स्वरूप लोगों की आस्था को बनाए रखना है तो मेला में लोगों की सुविधाओं का ध्यान एवं मनमानी वसूली पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। शिव लहरा मेला का आयोजन प्रशासनिक अधिकारियों की देख रेख में होना सुनिश्चित किया जाए केवल सुरक्षा तक ही जिम्मेदारी न रहे, बल्कि मेले का संपूर्ण जिम्मेदारी प्रशासन पर रहे तो शायद शिवलहरा मेला में भी लोगों को सुविधाएं मिल पाएंगी। जिले में भी शिव लहरा जैसे पुरातात्विक स्थल का नाम होगा।