अनूपपुर

एसईसीएल सीएमडी के विरुद्ध हाई कोर्ट ने जारी किया वारंट

मामला भटगांव क्षेत्र के एक श्रमिक के मेडिकल अनफिट से है जुड़ा हुआ

अनूपपुर। साऊथ इस्टर्न कोलफील्डस लिमिटेड पिछले 3 सालों से भारत मे 150 मिलियन टन कोयला का उत्पादन कर अग्रणी स्थान पर है,लेकिन जब मजदूरों का हक देने की बात है तो उनके खिलाफ अदालतों मे मुकदमा लड़ने मे करोड़ों रुपये खर्च कर सुप्रीम कोर्ट तक अपीलों का सिलसिला बनाये रखती है। हाल मे ही मनोज कुमार ठाकुर बनाम अम्बिका प्रसाद पाण्डा सीएमडी एसईसीएल और अन्य के मामलें मे माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा अवमानना याचिका क्रमांक 317/2020 पर 30/11/2021 को 50,000 के जमानती वारंट जारी करने से इस कंपनी के मदांध नियंताओं की करनी फिर बहस का मुद्दा बन गई है।
यह था मामला
स्वर्गीय मनोज कुमार ठाकुर 2008 से अंधत्व के शिकार हो गये थे इनको इलाज के लिये एमजीएम हास्पिटल रायपुर और पुष्टि के लिये प्रतिष्ठित शंकर नेत्रालय चेन्नई भी भेजा गया जहां उन्हें प्रोलिफरेटिव डायबेटिक रेटिनोपैथी के कारण कानूनी रुप से अंधा पाया गया। एनसीड्ब्ल्यूए के अनुसार मनोज कुमार ठाकुर भटगांव क्षेत्र एसईसीएल को मेडिकल अनफिट हो कर अपने आश्रित को नौकरी देने की सुविधा थी,परंतु एसईसीएल ने उन्हें मेडिकल अनफिट नही माना। मनोज ठाकुर ने 07 जनवरी 2008 और फिर 29 अगस्त 2008 मे अनफिट होने के लिये आवेदन दिया था, परंतु एसईसीएल प्रबंधन के द्वारा कोइ कार्यवाही नही की गई। 2010 मे एरिया मेडिकल बोर्ड मे परीक्षण भी हुआ लेकिन अनफिट नही घोषित किया गया न आश्रित को रोजगार दिया गया। मनोज ठाकुर ने 2011 मे माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ की शरण ली तब माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ ने इस तरह के ब्यवहार को एनसीडब्ल्यूए की धारा 9:4:0 के शब्दों और भावना के विपरीत पाया और मनोज ठाकुर के आवेदन को निर्णित करने के लिये एसईसीएल को निर्देशित किया,परंतु एसईसीएल ओएनजीसी की तरह एक फायदे वाली पब्लिक सेक्टर कंपनी है उसने अपील भी की और हार गई, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी माननीय हाई कोर्ट छत्तीसगढ़ के आदेश को सही मानते हुये एसईसीएल की अपील को खारिज कर दिया।
एसईसीएल ने न्यायालय के आदेश का नहीं किया पालन
एसईसीएल ने आदेश का पालन नही किया और अवमानना याचिका की अनदेखी करती रही। कई मौकौं के बाद भी जब एसईसीएल के सीएमडी नही माने तो 50,000 के जमानती वारंट के साथ 04 जनवरी 2020 को ब्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का आदेश माननीय हाई कोर्ट ने जारी कर दिया है।
दूसरे पब्लिक सेक्टर की राह पर चल रहा एसईसीएल भी
ज्ञातव्य है कि ओएनजीसी द्वारा मध्यस्थ जजों के पारिश्रमिक के भुगतान न करने पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह तीखी टिप्पणी की है आप पब्लिक सेक्टर हैं और आप के पास पैसा है तो आप कानूनी प्रक्रिया का हठधर्मिता से दुरुपयोग नही कर सकते हैं। एसईसीएल ने विवाहिता पुत्री को आश्रित रोजगार देने के मामलें मे सुप्रीम कोर्ट से हारने के लगभग 18 माह तक रोजगार नही दिया। आज भी 10 से अधिक केस माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय मे एसईसीएल के विरोध के कारण लंबित है।
करोड़ों रुपए कर रहे खर्च पर मजदूरों को नहीं देना चाहते उनका हक
एसईसीएल लाखों/करोड़ो खर्च कर रही है यह जानते हुये कि सभी आश्रितों को नौकरी देनां इन मजदूरों का हक अधिकार और रोजगार दिया जाना उच्च प्रबंधन का दायित्व बनता है।  तारीख पर तारीख-अपील पर अपील पर विश्वास रखता है एसईसीएल प्रबंधन वाटर कैरियर मामलें,मंगल सिंह एंव अन्य बनाम एसईसीएल का केस एसईसीएल ने 20 साल तक लड़ा, 4 बार सुप्रीम कोर्ट तक से हारने के बाद 03 साल तक कोतमा कोर्ट मे लड़ा, करोड़ो रुपये वकीलों की फीस पर खर्च किये और नौकरी भी दी। इसी प्रकार से विकलांगों को पदोन्नति मे आरक्षण नही दिया जाता है जबकि माननीय हाईकोर्ट ने महेश कुमार पाण्डेय बनाम चेयरमैन कोल इण्डिया लिमिटेड एंव अन्य के मामले मे ड्ब्ल्यू पी एस क्रमांक 123/2013 मे आदेश दिनांक 20 अक्टूबर 2021 को भारत की संसद द्वारा पास किये डिस्एबिलिटी (इक्वल अपार्चूनिटि, प्रोटेक्शन आफ राईटस् एंड फुल पार्टिशिपेशन) एक्ट 1995 के अनुपालन मे महेश पाण्डेय को वेलफेयर आफिसर पदोन्नति पर विचार करने को कहा तो मैनेजमेंट इस आदेश के विरुद्ध भी अपील करने की संभवतः मंशा बना रही है। विकलांग को देश के प्रधानमंत्री मंत्री दिब्यांग कह रहे है लेकिन केन्द्र सरकार के स्वामित्व की इन कंपनियों के पास पैसा है कोई कमी नही है फिर भी यह प्रश्न बड़ी तेजी से जनमानस मे कौंध रहा है कि जनता के पैसे का दुरुपयोग कर अपीलीय प्रक्रिया का नाजायज फायदा लेते हुये मजदूरों के हक को दबाने का अधिकार आखिर इन्हें किसने दिया है।
वाद और अपीलो पर खर्च पर सतर्कता विभाग की चुप्पी
वाद और अपीलों पर एसईसीएल प्रतिवर्ष करोड़ों खर्च कर रही है। जानकार मानतें हैं कि पिछले 06 सालों मे अपीलों पर दुगने से तीन गुने तक बढ़ने वाले खर्च की का कोई जिम्मेदार नही है,सतर्कता विभाग ने क्यों आंख मूंद रखी है यह भी एक विचारणीय पहलू है,इसमे भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहें है। अपीलार्थी के केस वापस लेने के आवेदन के बावजूद सुप्रीम कोर्ट से वकील को लाना और लाखो रुपये की मोटी फीस, हवाई जहाज और होटल का खर्चा देने का मामला विजिलेंस के संज्ञान मे था लेकिन समर्थ के नही दोष गोसांई की उक्ति कम से कम एसईसीएल के मामले मे चरितार्थ होती दिख रही है। मजदूर कोर्ट का चक्कर लगाते हुयेंबिना न्याय प्राप्त किये मर रहें हैं चाहे वो एसईसीएल उपक्रम के भटगांव के मनोज ठाकुर हों या चिरिमिरी क्षेत्र के अंधे हालपैक आपरेटर गुलाम सत्तार का लंबित मामला हो।
सब अपने मे हैं मद मस्त
कोर्ट की अपनी गति है, एसईसीएल के पास वकील है और वकीलों की लंबी पैनल है और अपील है और मजदूरों की दुर्गति है। एसईसीएल उच्च प्रबंधन की निरंकुशता किस कदर बढ़ा हुआ है इस बात का अनुमान आप आसानी से इसी बात से लगा सकते हैं कि आखिर ऐसी उपस्थिति क्यों पड़ी कि एसईसीएल के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक के खिलाफ वारंट जारी करना पड़ा।

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