अनूपपुर

पतझड़ दिखता है जंगलो में: हुई गर्मी आने की सुगबुगाहटःश्रवण उपाध्याय

अनूपपुर। अमरकंटक-मैकल-सतपुड़ा की पहाड़ियों में गर्मी की सुगबुआहट और पतझड़ के आ जाने से जंगलो के अंदर प्रवेश कर लेने से नई ऊर्जा का संचार मानो अपने आप हलचल करने लग जाता है जंगली जानवर, पशु पक्षीयो की हलचल छुप नही पाती है धीमे-धीमे पांव चलकर अपने शिकार की ओर बढ़ते है पर पतझड़ उन्हें सचेत कर दूर भगा देती है, जंगलो के बीच जंहा जल का बहाव दिखता है तो लगता है मानो अमृत बह रहा है मीठा-मीठा जल हर जीव के लिए अमृत सा है। सुनसान जंगल कुछ कहता भी चलता है जो आत्मा सुनती और समझती चलती है, यह जंगलो का खूब सूरत दृश्य प्रकृति हर जीव के लिए बनाया है पर इसे संजोय रखने में हम लोग गलती पे गलती करते चले आ रहे है, किसी एक पे दोस देना उचित नही क्षेत्र के हर मनुष्य का काम है प्रकृति को अपने आप मे चलते रहने देना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी दर पीढ़ी इसका लुफ्त उठा सके। वृक्षों के बीच जाकर आत्मीयता से जुड़ सके और पूर्वजो को धन्यवाद भी कह सके कि आपने यह हमारे लिए जो छोड़ा था उसका लुफ्त हमे भी प्राप्त हो रहा है। अमरकंटक मां नर्मदाजी की उद्गम स्थली है, जल, जंगल, जमीन क्षेत्र में प्रकृति ने पहले से ही खूब दिया है, वर्तमान में हम संजोय नही रख पा रहे कारण है। बरसात का जल बह जाने के कारण जमीन में पर्याप्त समा नही पाता,जंगलो में आग व पेड़ कटने से रोक हो नही पाती, और जमीन को कोई छोड़ना नही चाहता। अब क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या दिन प्रति दिन आगे ही बढ़ रही है, जंगलो के बीच अनेक स्थलों पर निर्माण, जंगलो के बीच पशुपालन, खेती, आदि प्रकृति के साथ मजाक तो मनुष्य ही कर रहा है कैसे जंगल को जंगल रख पाएंगे। पेड़ कट रहे गर्मी बढ़ रही, जल कम हो रहा।
मुश्किल लगता है प्रकृति हमारा साथ देने में सहयोग रखेगी। इस पतझड़ के प्राकृतिक दृश्य को अमरकंटक के पत्रकारों ने अपने कैमरे में कैद करते हुए अपने कलम से शब्द दिया है, अमरकंटक की इन वादियों का आज तो आनंद लीजिये कल किसने देखा है।

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