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पंचायती भ्रष्टाचार पर नही लग रहा है अंकुश

अधिकारियों की साठ-गांठ से रोजगार सहायक एवं सचिव की मनमानी

कलेक्टर से षिकायत के बाद भी नही हुआ स्थानांरण

अनूपपुर। जिले में आज भ्रष्टाचार गबन चरम सीमा में पहुँच चुका है और जिन्हें रोकने की जबाबदारी दी गई है वह भी पैसो की चमक के आगे नतमस्तक हो चुके है और उन्हें भ्रष्टाचार गबन करने की आजादी दे दी गई है। यह ममला ग्राम पंचायत बर्री की जिले से लगभग 5 किमी दूर ग्राम पंचायत बर्री में 6 महीने पूर्व अमृत सरोवर में मिट्टी खुदाई का कार्य करवाया गया किन्तु आज दिनांक तक भुगतान नही हो पाया है। जब की पैसा पंचायत के खाते में 8 महीने पहले से ही 15वां वित्त के रुप में पडा हुआ है। ग्राम पंचायत बर्री में चल रहे विकास कार्याे में रुचि नही ली जा रही है। तथा हितग्राही मूलक योजनाओं को सही क्रियान्वयन नहीं किया जाता है। मनरेगा एवं अन्य विकास कार्याे में मस्टर रुल में भी हस्ताक्षर नही किया जाता है।

पांच प्रतिशत कमीशन का लोगों से करते हैं मांग

समय पर मजदूरी भुगतान नही हो पाते आए दिन श्रमिकों के द्वारा सीएम हेल्प लाइन में षिकायतें की जाती है। तथा ये दोनों एक भी दिन ग्राम पंचायत बर्री में समय से उपस्थित नहीं होते किसी भी प्रकार के बिल का भुगतान करने के लिए कहा जाता है तो कहते है कि हमें पहले 5 प्रतिषत कमीषन चाहिए तभी हमारे द्वारा बिल का भुगतान हो पाएगा। रोजगार सहायक पीएम आवास का फोटो खीचने जाते है तो बोलता है कि पहले मुझे पैसा चाहिए तभी मै फोटो खीचुंगा। कई लोगों के षौचालय की फोटो खींचे हुये दो साल से उपर हो चुके है लेकिन आज दिनांक तक उनके खाते में पैसा नही डाला गया है हर काम के लिए पहले पैसे की मांग करते हैं।

प्रताड़ित ग्रामवासियों ने कलेक्टर से की शिकायत

ग्राम पंचायत बर्री के सभी ग्रामवासी इनमें बहुत प्रताड़ित हो रहे है तथा उक्त कारणों से परेषानी सभी जन प्रतिनिधियों को पंचायत में कार्य कराने में असुविधा होती है। ग्राम पंचायत के लोगों ने कलेक्टर से रोजगार सहायक और सचिव की षिकायत की लेकिन फिर भी हेतराम राठौर रोजगार सहायक ग्राम पंचायत बर्री एवं पंचायत सचिव गिरिजा यादव का ग्राम पंचायत बर्री से किसी अन्य पंचायत में स्थानांतरण नहीं हुआ।

अधिकारी मौन क्यों, क्या है मिलीभगत

प्रशासन को चुनौती देते हुये जनपद क्षेत्रों की ग्राम पंचायतें धुंधला बिल लगाती हैं, धुंधले बिल से यह जाहिर नहीं हो पाता है, कि बिल सही लगा है या गलत आखिर उपर बैठे उच्चाधिकारी इसको रोक क्यों नहीं पा रहे हैं, यह भी एक बडा सवाल है, कि कहीं उच्चाधिकारियों की रजामंदी से यह सब तो नहीं हो रहा है, शायद इसी वजह से उच्चधिकारी मौन रहते हैं, उपर बैठे अधिकारी पंचायतों के कर्मचारियों के काले कारनामों या धुंधले बिल की कभी जांच तक नहीं करते है,कुल मिलाकर कार्यवाही न होना अधिकारियों के कमीशन की तरफ इशारा करता है।

बिलों में हो रही हजारों की हेरा फेरी, जिम्मेदार है मौन

पंचायत में लगने वाले बिलों में हजारों रुपए की हेरा फेरी की जा रही है परंतु जिला पंचायत प्रशासन को इसकी कोई जानकारी नहीं है,जिला पंचायत के प्रशासनिक अधिकारी ग्राम पंचायतों में सिर्फ नाम मात्र की जांच का हवाला देकर चुप्पी साध लेते हैं।

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