
लछनपुर जिला मुंगेली। वर्तमान परिदृश्य में कोरोना ने भारत के अलावा अन्य सभी देशों में अपना साम्राज्य इस तरह से फैलाया है कि इससे मुकाबला करना टेढी खीर साबित हो रही है। इस महामारी ने कमर तोडने में कोई कसर नही छोडी अर्थात् जन-जीवन तो प्रभावित है ही अर्थव्यवस्था को भी हाशिए पर खडा कर दिया हैै, दिन व दिन स्थिति खराब होती चली जा रही है। जितने मरीज ठीक हो रहे है। इससे दुगने की संख्या में मृत्यु को प्राप्त कर रहे है। इसकी मार सबसे अधिक मध्यम वर्गीय व निम्न वर्गीय परिवार को ढोना पड रहा है। परिवार व समाज के लोग दाने-दाने को मुहताज हो रहे है। लोग मजबूर हो रहे है आत्माहत्या करने को, परन्तु स्थिति इतनी भयाकर हो गई है कि सरकार भी नियंत्रित नही कर पा रही है। ऊपर से प्राकृतिक प्रासदी ने अपना भयंकर रुप भी दिखा दिया, बाढ से पूरी फसल घर, खेत, खालिहान सब चैपट हो गया है। छत्तीसगढ़ किसानों की भूमि है जनजातियों का प्रदेष है आपने तो सुना ही होगा कि हमारा छ.ग. राज्य भारत का 26 वां राज्य है व अपने धन धान्य व सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि इसे छ.ग. महवारी की संज्ञा दी गई है। छ.ग. में कोरोना का दंश तीव्र गति से फैल रहा है। यहां सबसे पहले श्रमिकों को कोरोना ने अपने लपेटे में लिया फिर मध्यम वर्गीय लोगों को इतना ही नही यह क्रम अब उच्च वर्गीय व्यक्तियों अर्थात् जिन लोगें ने यह सोचा कि हमें तो पूरी ऐहतिहास में रहते है हमें यह बीमारी हो ही नही सकती आखिरकार वे भी चपेट मे आ ही गए। यह सिद्ध हो गया कि बिमारी रुपी कोरोना ने भी यह बना दिया कि मानव मानव एक समान हैं, परन्तु सोचनीय विषय यह है कि इन छःग. माह में हमने इस महामारी पर कितना विजय स्थापित कर लिया यदि आंकलन करे तो सिर्फ खानापूर्ति ही प्रतीत हो रहा है हम पूर्व रुप से सरकार को भी दोषी नही ठहरा सकते की सरकार ने कोई कदम नही उठाए यह त्रुटि होगी सरकार तो हमने ही बनाई हमें खुद ही जागरुक होकर सरकार के समर्थन में कार्य कर अपने आप को स्वयं अपनी मानसिकता से अपनी बौद्धिमत्ता से बचाव के साथ में इस बीमारी से लडना है। क्योकि हमे यह अच्छे से मालूम है कि हमारे देष में स्वास्थ्य संसाधन की कमी है हम विकासषील स्थिति में है। छत्तीसगढ में तो साक्षरता की भी कमी है। स्तर सरगुजा दंतेवाडा क्षेत्र मे तो साक्षरता दर अति न्यून स्तर में है। फिर हम राज्य को कैसे बचाएं? महामारी से इस दिषा में सोचने व सूझबूझ के साथ कोई ठोस कदम उठाने की आवष्यकता है हमे पता है कि हमारे राज्य मे कर्ज का बोझ पडा हुआ है ऊपर से महामारी के कारण राज्य का विकास ठप्प पडा हुआ हैं परन्तु कब तक के क्रम ने यदि सोचे तो एक ऐसी वस्तु जिसने हमें इस बिमारी से बचाए रखा वह है गमछा अंग्रेजी अनुग्रह मास्क है। गमछा अर्थात् छ.ग. का प्रत्येक व्यक्ति यहां तक बच्चे तक गमछे के महत्व को समझते है छ.ग. के किसानों का प्रतीक गमछा जिसे बाहरी लोग ऐसा कहते है कि इसे केवल देहाती लोग ही पहनते है मगर कोरोना ने तो गमछे को शहरातीयों के गले में भी पहना दिया ,गमछे का उपयोग कई प्रकार से किया जाता है। छ.ग. राज्य के लोगों के द्वारा नहाते समय, सब्जी लाने के लिए, धूप से बचने के लिए, ठंड से बचने के लिए, पगडी के रुप में फैशन के लिए, लुंगी के रुप में और भी अन्य रुप मे गमछा बहुपयोगी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आज के दौर में कोरोना के आने से गमछा का उपयोग सभी लोगों को समझ आ गया है इसलिए क्यूं न हम इसे राजकीय पोषाक के रुप मे सुषोभित करे। और राज्य शासन इसे अनिवार्य कर दे कि प्रत्येक व्यक्ति के पास यह बहुपयोगी गमछा हो जो कि राज्य की शान हो ,व्यक्ति की पहचान हो, महामारी का काल हो नियति का ज्ञान हो जिस प्रकार छ.ग. की पहचान धान के कटोरा के रुप में होती है। राजकीय पशु-वन भैसा, राजकीय पक्षी-पहाडी मैना, राजकीय वृक्ष-साल (सरई) उसी प्रकार राजकीय पोषाक-गमछा का स्थान दिया जाए। अभी तो हमारे देश में वैक्सीन की कहानी दिल्ली दूर है कहावत सी प्रतीत हो रही है कल डूबते को तिनके का सहारा ही काफी होता है इसलिए गमछा रुपी वैक्सीन ही है जो हमे कोरोना के संक्रमण से बचा सकता है अतः राज्य सरकार से विनम्र है कि छ.ग. राज्य के पोषाक गमछा को महत्व देते हुए राजकीय बनाकर उसे सम्मान प्रदान करे व प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य करे इसे चाहे गमछा कहे, स्टाॅल कहे चाहे मास्क तीनों एक ही शब्द के पर्यायवाची है, इसके उपयोग अनेक है इसीलिए इसके मार्ग को हम चार लाइना मे समझते है।
छत्तीसगढिया सबसे बढिया कहियें सब इंसान ।।
गमछा के गुर ल जानव दे दब राजकीय सम्मान ।।
ठंडा गर्मी बीमारी तक कर थे अपन काम ।।
नई जानव लेन जान लौ भैया ए गमछा हवय महान।।
लेखिका
डॉ. सरिता भारद्वाज लछनपुर जिला मुंगेली छत्तीसगढ़ की निवासी है।