काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन, सभी ने दी एक से बढ़कर एक प्रस्तुति

मनेन्द्रगढ़। अब तो रावण पहचाने नहीं जाते, लंका अब सोने की नहीं, पानी की हो गई है, जलेगी कैसे? लोकसंचेतना फाउंडेशन की मनेन्द्रगढ़ इकाई द्वारा आयोजित कवि गोष्ठी में अपनी कविता पढ़ते हुए क्षेत्र की सुख्यात कवयित्री अनामिका चक्रवर्ती ने प्रभु श्रीराम और आधुनिक समय के रावण की बात कही। इसी तारतम्य में पुष्कर तिवारी ने कहा कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद, कहीं गुरुद्वारा है, आदमी इनका नहीं इनके नुमाइंदों का मारा है। गीतकार दादू भाई ने अपने गीत में कहा साथ तेरा मिलेगा तो जी लेंगे हम, जहर जिंदगी का पी लेंगे हम। व्यंग्यकार श्रवण कुमार उर्मलिया ने बहुत मार्मिक व्यंग्य पढ़ा आज रिश्तेदारों के इकट्ठा होने के लिए किसी का मरना जरूरी है। गंगा प्रसाद मिश्र ने अपनी रचना पढ़ी कैसे झुंड भेड़ियों के,अब डरे हुए छिपे मेमने। इसी तारतम्य में कवि गौरव अग्रवाल ने कहा दो वक्त की रोटियों की कीमत बहुत चुकाई है आत्मा ने,कहाँ पता था कि वो निवाले मेरी वसीयत निगल रहे हैं। व्यंग्यकार, कार्टूनिस्ट जगदीश पाठक ने चश्मे के दुकानदार पर अपना व्यंग्य सुनाया। अंत में नगर के फोटोग्राफर, कवि मृत्युन्जय सोनी ने एकदम नए विषय पर कविता पढ़ी सुंदर पत्नी का पति, अपनी पत्नी को सबको दिखाना चाहता है। किसी प्रतियोगिता में जीती ट्राफी की तरह और सबसे छुपाना भी चाहता है। किसी कीमती धन की तरह। कार्यक्रम के अंत में सचिव रितेश श्रीवास्तव ने सभी के प्रति आभार जताया।