
बिलो रेट पर टेंडर, घटिया निर्माण को शह
कमलेश मिश्रा 9644620219
अनूपपुर । अनूपपुर जिले की नगर पालिकयो के अधिकांश काम अनुमान से कम लागत पर पूरे हो रहे हैं। आश्चर्य है गुणवत्ता के साथ यह समझौता नियमानुसार चल रहा है। जिम्मेदार भी यही मान रहे हैं कि यही सिस्टम है। लेकिन बिलो रेट पर टेंडर कॉल और उसके बाद घटिया काम का खामियाजा आम जनता भुगत रही है।
बिलो रेट पर काम होने का यह प्रतिशत एक या दो नहीं बल्कि 20 से 30 प्रतिशत तक है। काम होने के बाद ठेकेदार करीब 20 परसेंट राशि ही पार्षद से लेकर नपा के कर्मचारी-अधिकारियों तक रिश्वत के रुप में बांटता है। कुल इस्टीमेटेड रेट का 40-45 फीसदी हिस्सा सिर्फ बिलो राशि और कमीशनखोरी में खर्च हो जाता है। अब ऐसे में ठेकेदार गुणवत्ता के साथ कैसे काम कर सकता है यह एक बड़ा सवाल है।
जब इसकी इसकी पड़ताल की गयी तो पता चला कि, जिले के नगरपालिकयो की ज्यादातर सड़क सीमेंटीकरण निर्माण, भवन, नाली और तालाब सौंदर्यीकरण के कार्यों में बिलो राशि टेंडर हुआ है। काम शुरू भी हो गए हैं। गुणवत्ता बिल्कुल भी दिखाई नहीं दे रही है। इस सिस्टम को बदलने की जरुरत है। लेकिन जिम्मेदार इसके लिए संजीदा नहीं हैं।
बिलो रेट के गणित को आप ऐसे समझिए…
ठेकेदारों के बीच हो रही प्रतिस्पर्धा के कारण ठेकेदार अनुमानित लागत से कम पर टेंडर भरते हैं। जिसका रेट सबसे कम, नपा उसे काम देता है। अनूपपुर जिले की सभी नगरपालिकाओं में यह मूल लागत से 2 से लेकर 30% तक कम है। यह निर्माण कार्यों की गुणवत्ता के लिए खतरनाक है।
1 करोड़ रुपए में सड़क सीमेंटीकरण करना है। ठेकेदार30%कम रेट पर टेंडर डाला। लोएस्ट होने पर काम मिल जाएगा।
70 लाख रुपए में एक करोड़ का काम होगा। इसी 70 लाख रुपए में कमीशन बंटेगा। ठेकेदार अपना मुनाफा भी निकालेगा।
30 लाख रुपए निगम बचा लेता है। जिसे अन्य कार्य में खर्च करता है। जो कि व्यवहारिक नहीं होता। बिलो रेट का प्रतिशत ज्यादा हो तो मैनेज करना मुश्किल
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक ठेकेदार ने बताया कि, ठेकेदारों के बीच कंपीटिशन की वजह से बिलो राशि पर टेंडर होता है। 5-10 परसेंट ब्लो राशि हो तो काम हो जाता हैै। अगर 15 से 20 या उससे अधिक 30 परसेंट बिलो हो तो काम करना मुश्किल हो जाता है। निर्माण कार्य की क्वालिटी भी ठीक नहीं रहती। सिर्फ खानापूर्ति होती है।
कमीशन का चक्कर, एक्चुअल काम और कम रेट पर
नगर पालिकाओं के बाबू व इंजीनियर 10%, स्थानीय पार्षद 5% कमीशन लेते हैं। ठेकेदार स्वयं के लिए 10% राशि बचाता है। हकीकत में 25% राशि बंट जाती है। इस प्रकार एक करोड़ का काम महज 45 लाख में आकार लेता है। ऐसे में आप गुणवत्ता की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।यदि जिला कलेक्टर किसी भी नगरपालिका में जांच करवा ले तो कामो की गुणवत्ता की पोल स्वतः सामने आ जायेगी।