वन क्षेत्र में हो रही अंधाधुंध पेड़ों की कटाई मामला पहुंचा HC
अनूपपुर में जंगल पर कब्ज़ा, पेड़ काटे जा रहे, अधिकारी चुप

अनूपपुर। मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में आरक्षित वन भूमि पर बड़े पैमाने में हों रहे अतिक्रमण का गंभीर मामला सामने आया है, जिसने प्रशासन की निष्क्रियता और वन क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जंगल की यह ज़मीन, जिसे सरकार द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है। उस पर अतिक्रमणकारियों ने न केवल कब्ज़ा कर लिया है बल्कि मनमानी पेड़ों की कटाई भी की जा रही है। यह कटाई सिर्फ पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचा रही, बल्कि उस पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर रही है, क्योंकि वहाँ के जानवर हो या ग्रामीण, सभी इन्हीं जंगलों पर निर्भर हैं। इसके बावजूद, संबंधित सरकारी विभाग और अधिकारी आंख मूंदकर बैठे हुए हैं।
वकील ने खुद की जांच, हाईकोर्ट की शरण ली
इस मामले को उजागर करने वाले अनूपपुर निवासी अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत दास पटेल है। जिन्होंने खुद मौके पर जाकर हालात का जायज़ा लेते हुए इससे जुड़े दस्तावेज़ जुटाए। उन्होंने कई बार संबंधित अधिकारियों को शिकायतें भेजीं, लेकिन जब कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला, तो उन्होंने इस मुद्दे को जनहित याचिका (PIL) के जरिये मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के सामने रखा। उनकी याचिका एक आपदा का अलार्म है, जिसे अनदेखा करना आने वाली पीढ़ियों के लिए भयावह साबित हो सकता है।
2012 और 2018 की रिपोर्ट में हुई अतिक्रमण की पुष्टि
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिषेक पांडे और अधिवक्ता राजेश शर्मा ने कोर्ट को बताया कि इस वन क्षेत्र में लगभग 1000 एकड़ पर अतिक्रमण कर बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई चल रही है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर दो व्यक्तियों मदन पटेल और सदन पटेल के नाम प्रस्तुत किए हैं। उनका दावा है कि इन दोनों ने वर्षों पहले जंगल की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा कर लिया था। इस दावे की पुष्टि वर्ष 2012 में वन विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में भी हुई, जिसमें बताया गया कि आरएफ 276 कंपार्टमेंट की 5.408 हेक्टेयर भूमि पर मदन पटेल का कब्ज़ा है। इसके बाद, 2018 में एक न्यायिक आदेश में भी यह पाया गया कि मदन और सदन पटेल आरक्षित वन भूमि पर कब्ज़ा किए हुए हैं। इन रिपोर्टों से यह साफ जाहिर होता है कि शासन और प्रशासन इस अतिक्रमण से भलीभांति परिचित हैं, बावजूद इसके कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया गया।
राजस्व रिकॉर्ड में ज़मीन ‘लोक कल्याण ट्रस्ट’ के नाम, फिर भी कब्ज़ा!
अधिवक्ताभिषेक पांडे ने कोर्ट के सामने यह तथ्य भी रखा कि जिस ज़मीन पर यह अवैध कब्ज़ा किया गया है, वह ‘लोक कल्याण ट्रस्ट’ के नाम पर राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है, यानी सरकारी रिकॉर्ड में भी यह साफ है कि भूमि निजी नहीं है। इसके बावजूद, अतिक्रमणकारी न केवल ज़मीन का उपयोग खेती और निर्माण के लिए कर रहे हैं, बल्कि पेड़ों की अवैध कटाई करके वन संपदा को भी नुकसान पहुँचा रहे हैं। इस क्षेत्र में न केवल कानून की खुलेआम अवहेलना की जा रही है, बल्कि सरकार की संपत्ति पर भी कब्ज़ा जमाया जा रहा है।
तहसीलदार को करना था कार्रवाई, लेकिन चुप्पी साध ली
अधिवक्ता राजेश शर्मा ने कोर्ट को बताया कि मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता की धारा 248 के अनुसार, किसी भी सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा होने की स्थिति में तहसीलदार को कार्रवाई करनी होती है। लेकिन इस मामले में तहसीलदार ने अब तक कोई कार्यवाही नहीं की। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह चुप्पी केवल लापरवाही नहीं, बल्कि इस मामले में तहसीलदार की भूमिका भी संदिग्ध है, जिससे शक होता है कि कहीं अधिकारी खुद इस अवैध कब्ज़े में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल तो नहीं। क्योंकि अगर समय रहते कार्रवाई होती, तो शायद इतना बड़ा वन क्षेत्र बचाया जा सकता था।
जिम्मेदारों पर मिलीभगत का आरोप
याचिकाकर्ता का कहना है कि पूरे अनूपपुर क्षेत्र में आरक्षित वन भूमि पर बड़े पैमाने पर कब्ज़ा किया गया है, और ऐसा लगता है कि या तो कुछ अधिकारी अतिक्रमणकारियों से मिले हुए हैं, या वे जानबूझकर आंख मूंद कर बैठे हैं। दोनों ही स्थितियों में यह सीधे तौर पर यह राज्य की कीमती वन संपदा को नष्ट करने की अनुमति देने जैसा है। इस याचिका के जरिये उन्होंने कोर्ट से यह अपील की है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को सज़ा दी जाए।
हाईकोर्ट ने अतिक्रमण और पेड़ों की कटाई पर लगाई रोक
इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जबलपुर हाईकोर्ट में जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच ने राज्य सरकार सहित सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है। राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता ने नोटिस स्वीकार किया और जवाब प्रस्तुत करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। कोर्ट ने आदेश देते हुए यह भी कहा कि जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, तब तक आरक्षित वन भूमि पर किसी भी प्रकार की पेड़ों की कटाई या नया अतिक्रमण नहीं किया जाए, सिवाय इसके कि वन अधिकारी द्वारा नियम अनुसार अनुमति दी गई हो।
अगली सुनवाई में कोर्ट में पेश होगी रिपोर्ट
इस जनहित याचिका पर अब अगली सुनवाई 10 सितंबर 2025 को होगी। अगली सुनवाई में राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट दाखिल करेगी। जिसमें अतिक्रमण की स्थिति और अब तक की गई कार्रवाई की विस्तृत जानकारी शामिल होगी। याचिकाकर्ता का तर्क है कि यदि इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो आने वाले वर्षों में मध्य प्रदेश के कई वन क्षेत्र केवल नाममात्र के रह जाएंगे।