कर्मचारियों-अधिकारियों ने दिये ब्यान साथ ही मांगी जरूरी जानकारिया
एसेसर अख्तर जावेद उस्मानी ने प्रबंधन और ठेकेदार के विरुद्ध लगाए कई गंभीर आरोप
रिपोर्टर@समर बहादुर सिंह
राजीगंज/धनबाद। कोल इंडिया की ईसीएल उपक्रम के राजमहल परियोजना में हुई खान दुर्घटना की जांच के लिए गठित कोर्ट ऑफ इंक्वायरी की सुनवाई के अंतिम दिन कांट्रेक्टर महालक्ष्मी इंफ्रास्टे्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के सुपरवाइजर कृष्णकांत उपाध्याय ने डीजीएमएस के द्वारा रिकार्ड किये गये बयान से इंकार करते हुए 29 दिसंबरए 2016 को या पहले किसी खतरे को आभास से इंकार कर दिया। कांट्रेक्टर के राजेश पटेल सुपरवाइजर को सम्मन करने के बाद भी कोर्ट के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। बलास्टर पी.एन.मिश्रा ने भी किसी खतरे के आभास से इंकार किया। राजमहल के वर्कमैन इन्सपेक्टर बीएस चक्रवर्ती ने भी दुर्घटना से पहले किसी भी खतरे से इंकार दिया। इस पर ऐसेसर अख्तर जावेद उस्मानी ने कहा कि किसी कोई खतरा नहीं लग रहा था। 23 ठेका मजदूर मर गयेएयदि माइनिंग इंजीनियरिंग साइंस का पूरा दारोमदार व्यक्तिगत समझ पर है तो मजदूरों का क्या होगा, लेकिन प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के बयानों में बदलाव के बाद इंक्वायरी के परिणाम भी प्रभावित होने की संभावनाएं हैं। कोर्ट की अगली तिथि मार्च के अंत में होगी। 50 गवाह कोर्ट में प्रस्तुत हुए जिन्होने हलफनामा दिया है। यदि चाहे तो 31 मार्च 2020 तक अपना लिखित कथन दे सकते हैं। कोर्ट की तीसरी बैठक 10 फरवरी से 12 फरवरी तक चली। दूसरे दिन महालक्ष्मी इंफ्रास्टे्रक्चर प्राईवेट लिमिटेड की ओर से ठेकेदार विनेश ढोलू अहमदाबाद से पहुँचे। एसेसर अख्तर जावेद उस्मानी ने उनसे सवाल किया कि मृत ठेका मजदूरों को कितनी-कितनी राशि का पीएफ भुगतान किया गया। 23 परिवारों को पेंशन कितना मिल रहा है, 23 कर्मी मजदूरों की मौत मरने पर ग्रेच्युटी का भुगतान पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी 1972 की धारा 4 के अनुसार भुगतान हुआ कि नहीघ् तो इन सवालों से यह बात सामने आई कि इन मदों में घटना के तीन सालों के बाद भी मृत ठेकेदारी मजदूरों को भुगतान नहीं हुआ। ठेकेदार से पूछे जाने पर कहा गया कि वो हर भुगतान हेतु तैयार है, इस प्रकार से यह पूछे जाने पर कि 2014 से 2016 के बीच डम्प हाईट में बिना सोचे समझे की गई बेतहाशा वृद्धि ही 23 श्रमिको की मृत्यु का प्रमुख कारण बनी तो पूर्व महाप्रबंधक राजमहल अखिलेश पाण्डेय ने माना कि खतरे के बारे में उनका अनुमान गलत हो सकता है। अख्तर जावेद के सजेशन पर प्रोफेसर फाल्गुनी सेन ने माना कि माइनिंग प्रोजेक्ट के एप्रूवल के समय ही सुरक्षा संसाधनो की लागत को भी स्वीकृति देना चाहिए।
हिन्द मजदूर सभा की ओर से ऐसेसर अख्तर जावेद उस्मानी के प्रश्नों पर डीजीएमएस द्वारा हड़बडाहट मे अपनी निरीक्षण शक्तियों का इस्तेमाल न करने और अन्य कमियों को छुपाने के लिये दी गई रिपोर्ट की कमियां उजागर हो गई हैं,तीन-तीन पूर्व रिटायर डायरेक्टर जनरल माईन्स सेफ्टी अपने कथन से कोर्ट आए इन्कवारी को संतुष्ट नही कर पाये हैं, जिस प्रकार से जांच हो रही है इस प्रकार के जांच के वर्तमान तरीकों से कभी भी सही परिणाम सामने नही आ सकता हैं। ओव्हरबर्डन डम्प स्लाइड से 23 ठेका मजदूरों की मृत्यु की विशद जांच हेतु माइंस एक्ट 1952 की धारा 24 के आधीन श्रम मंत्रालय भारत सरकार द्वारा गठित कोर्ट आए इन्कवारी की प्रक्रिया के तीसरे चरण मे जांच मे नये कथन सामने आये हैं। झारखंड के गोड्डा जिले मे अवस्थित राजमहल ओपेन कास्ट माईन की उत्पादकता 17 मिलियन टन प्रति वर्ष थी। सुरक्षा का जिम्मा ठेकेदार पर छोड़ दिया गया था। एग्रीमेंट की वैधता भी संदिग्ध है। यह बातें भी कोर्ट के समक्ष आई हैं। अख्तर जावेद द्वारा ठेकदार से यह पूछने पर कि आपने यह एग्रीमेंट साइन किया है और सुरक्षा की जिम्मेदारी के भागी है तो आप को सुरक्षा नियमों के उल्लंघन का दोषी क्यों न माना जाये, ठेकेदार जवाब नही दे पाया और सब कार्य प्रबंधन के आदेश पर करना ठेकेदार बताता रहा।