आर्टिकल

कोविड-19 पर एक शिक्षा की कलम से समसामायिक चिन्तन

बातों से जंग नहीं जीता जा सकताः-मानिक पुरी

आज भारत ही नहीं विश्व के सम्पूर्ण देशों में परमाणु बम, लड़ाकू विमान और हथियार, कोविड-19 के आगे निष्क्रिय हो चुके हैं। ऐसे समय में सम्पूर्ण विश्व के मानव जाति के सुरक्षा की जिम्मेदारी पूर्ण रूप से डॉक्टर्स-नर्स व स्वास्थय कर्मियों के हाथों में है। कोविड-19 के महामारी से लड़़ने के लिये सभी देशों की सरकारों ने यह मान लिया है कि डॉक्टर्स व अन्य स्वास्थ्य कार्य कर्ता इस भीषण महामारी से लड़ने वाले प्रथम रक्षा पंक्ति के योद्धा हैं और दूसरे पंक्ति में हमारे सुरक्षा अधिकारी व कर्मचारी हैं। तीसरी और सुरक्षित पंक्ति में नीति निर्माता मंत्रीगण, विद्वान न्यायाधीश आदि हैं।
प्रथम रक्षा पंक्ति के योद्धाओं की सुरक्षा के लिए त्वरित गति से तटस्थ रहते हुए निर्णय लेने की आवश्यकता है। केवल मरणोपरान्त एक करोड़ व 50 लाख की राशि उनके परिवार के लिये पर्याप्त नहीं है जैसा कि राज्य सरकारों ने घोषित किये हैं। आवश्यकता है इन राशियों से हर योद्धा को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने की, मरणोपरान्त पुरस्कार देने की मानसिकता से हमें बाहर आना होगा। मैंने एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में पढ़ा था कि हमारे देश में प्रति ग्यारह हजार व्यक्ति पर एक डॉक्टर हैं ऐसे में एक डॉक्टर की मौत का अर्थ है ग्यारह हजार व्यक्तियों की असुरक्षा। आज हमारे डॉक्टर्स और तमाम स्वास्थ्य कर्मी भी अपनी सुरक्षा को लेकर डरे सहमे हुये हैं, उनकी सुरक्षा को लेकर सरकार कितनी चिंतित है? यहां यह कहना उचित होगा कि केवल बातों से जंग नहीं जीता जा सकता।
विचार करना होगा आखिर डॉक्टर्स व स्वास्थ्य कर्मियों को 23 अप्रैल को काला दिवस मनाने का निर्णय क्यों लेना पड़ा…… कोविड-19 से लड़ने वाले प्रथम पंक्ति के योद्धा जब पीछे हट जाएंगे तो क्या होगा? मरणोपरान्त पुरस्कार की घोषणा की आवश्यकता नहीं, बल्कि आवश्यकता है उन्हें जीते जी विशिष्ट सुरक्षा प्रदान करने की। जिस प्रकार महत्वपूर्ण व्यक्तियों की श्रेणी की सुरक्षा दी जाती है, उसी प्रकार के सुरक्षा की आवश्यकता आज कोविड-19 से लड़ने वाले हर डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मियों के लिए आवश्यक है। अग्रिम रक्षा पंक्ति के इन योद्धाओं पर किसी भी प्रकार से हमला करने वालों से उसी प्रकार पेश आना चाहिये जैसे आतंकवादियों से देश की सेना पेश आ रही है। आक्रमणकारियों को न पकड़ने का अर्थ होगा नए संक्रमण की संभावनाओं को बढ़ाना। ऐसा कब तक चलता रहेगा? विश्व स्तर पर सभी डॉक्टर्स-नर्स व स्वास्थ्य कर्मी अपने घर परिवार से दूर रह कर शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक व संवेगात्मक रूप से संतुलन स्थापित करते हुये इस महामारी से संपूर्ण मानव जीवन को बचाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
यदि समय रहते घृणित मानसिकता वाले लोगों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो कोरोना रूपी दानव के साथ भुखमरी के काल के गाल में समाने के लिए हमें तैयार रहना होगा। ऐसे समय में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले लोग मजदूर व किसान वर्ग होंगे।
कोरोना के विस्तार व उसके स्वरूप के कारण सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हंै। खाद्य वस्तुओं की असुरक्षा और उत्पादन की कमी, रोजगार का समाप्त होना, एक अनजाने भय की ओर संकेत कर रहा है, और कुछ समय ऐसे ही चलता रहा तो लूटमार, चोरी-डकैती जैसे अनैतिक कार्य जन्म लेंगे। जिसकी शुरुआत हो चुकी है मैंने 22 अप्रैल को एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में पढ़ा कि एक युवक ने अपनी माॅं को भूख से तड़पता देख चोरी की। जिसे न्यायधीश महोद्य ने सजा देने के बजाय राशन प्रदान किया।
मुझे लगता है अब पुनः ‘‘जय जवान जय किसान’’ के नारे को बुलंद करने का वास्तविक समय आ रहा है। क्योंकि भारत आज भी एक कृषि प्रधान देश है। आज हम अपनी ही नहीं बल्कि दूसरे देशों को कृषि उत्पाद का निर्यात कर उनकी क्षुधा भी मिटाने में सहयोग कर सकते हैं।
       चिंतक
श्रवण कुमार मानिकपुरी,
प्रधानाध्यापक शा.बा.उच्च.मा. विद्यालय राजनगर,
जिला-अनूपपुर, म.प्र.

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