आर्टिकल

स्वच्छता और आचरण

लेखक महेश कुमार तिवारी

निर्मल……..
शब्द सुनते ही ऐसा लगता हैं, मानो ईश्‍वर की चर्चा हो रही हो और जेहन में एक ऐसी छवि अभर कर आती हैं जिसमें चंद्रमा के समान भी दाग ना हो ऐसी परिकल्पना तो केवल हम अपने आराध्य की ही कर सकते है। निर्मलता तो मानव स्वभाव मे बहुत ही कम मिलता हैं नही तो वह भी ईश्‍वर के समान हो, मानव स्वभाव में तो केवल स्वच्छता ही परिष्कृत है। विभिन्न के छाया कारों और फिल्मकारों ने भी देव और दानव को केवल उनके आचरण और सौंदर्य के द्वारा ही परिभाषित किया है। किंतु स्वच्छता तो दोनो समाज में ही अलंकृत है। प्रकृति ने यह नैसर्गिक गुण मानव को भी प्रदान किया है स्वच्छता तो हमारे रोम में बसा है इस धरती पर अंकुरित होने के लिए जिस दिन से हम भ्रूण के रुप में गर्भ में स्थापित होते है। और अपना कुछ जीवन वहां बिताने के बाद हम अपने ही अपशिष्‍ट पदार्थ को ग्रहण न करने लगे इसके लिए प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था बनाई है कि निश्चित समय (9 माह पूर्ण होते-होते ) मै हम गर्भ से बाहर इस धरा पर आएं प्रकृति ने हमें यह जन्म से ही सिखाया है। कि हम स्वच्छ और निर्मल बने रहें, जन्म से लेकर किशोरावस्था तक स्वच्छ रहना सिखाया जाता है। लेकिन युवा अवस्था आते-आते इससे अपने स्वभाव में शामिल करना व्यक्ति – विशेष पर निर्भर करता है। और आगे भी यह शिक्षा मिलती है। कि स्वच्छ रहे स्वस्थ रहे किंतु कदाचित हम अपने आचरण स्वभाव और दैनिक कार्याे में लापरवाही बरतने के कारण अपने आसपास के स्थानों एवं पर्यावरण को दूषित कर रहें है। पशु भी अपने नवजात को चाट-चाट कर स्वच्छ और निर्मल कर लेती है। स्वान भी किसी भी जगह पर बैठने से पहले अपनी पूंछ से उस जगह को साफ कर लेता है। सभी शाकाहार जानवर कभी उसी जगह नही बैठते है। जहां उन्‍होने मल त्याग किया हैं अपने देखा होगा सरायओ में जब तक जानवरों का मालिक सराय को सुबह अच्छी तरह से साफ नही कर देता तब तक पशु ज्यादातर समय केवल खडे-खडे ही व्यतीत कर देते है। और वह केवल उसी जगह बैठते है। जहां जगह साफ-सुथरी या उनके स्वभाव के हिसाब से थोडी गद्देदार जगह हो फिर भी हम तो मनुष्य हैं हमारा बौद्धिक स्तर पशुओ से बहुत ज्यादा ऊंचा है। ईश्‍वर ने हमारी संरचना ही ऐसी बनाई है। कि हमारा मस्तिष्क हमारे उदर के बहुत ऊपर है। बल्कि वैकल्पिक रुप में यह देखेंगे की पशुओ का मस्तिष्क उनकी आधार संरचना के समानांतर है। फिर भी वह हमसे स्वच्छता के मामले में बहुत आगें है। हम अपने पर्यावरण को दूषित करने और आसपास के स्थानों को स्वच्छ नही बनाने का मूल कारण केवल और केवल हमारे दैनिक जीवन में किए गए लापरवाही पूर्वक कार्य ही है। स्वच्छ रहने और स्वच्छता को बनाए रखने के लिए बुनियादी शिक्षा और जागरुकता की नितांत आवष्यकता है। हमें स्वच्छता के विषय को लेकर के अभी भी व्यापक रुप से प्रसार-प्रसार करना पडेगा लोगों की गलत आदतों मैं सुधार लाना होगा हमें उन सभी अनुपयोगी चीजों से बचना होगा जो हमारे पर्यावरण को प्रभावित कर रहें है। मेरे व्यक्तिगत नजरिया से कम लागत में ज्यादा लाभ अर्जित करने वाली अर्थव्यवस्था भी कुछ हद तक हमारी स्वच्छता को बाधित कर रही है। और पर्यावरण का संतुलन पूर्णरुपेण ध्वस्त कर रही है। उदाहरण के तौर पर देखेगे पहले हम सब पत्तियों द्वारा बनाए गए दोना और पत्तलओ का उपयोग करते थे लेकिन वर्तमान में कम लागत और ज्यादा लाभ कमाने वाली अर्थव्यवस्था ने पाॅलीथिन का आविष्कार कर पर्यावरण को सबसे ज्यादा प्रदूषित किया है। इसकी न गलने कर (नष्ट) की विशेष गुण ने हमारे स्वच्छता पर गहरा प्रभाव डाला है। उस समय का सबसे बेस्ट (उत्तम) उत्पाद वर्तमान में सबसे वेस्ट (खराब) उत्पाद हो गया है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने हमारी धरा से मंद पवन और जल दोनों को ही निगल लिया है। जब जल ही नही है। तब कृषि जोत (खेत) होने पर भी प्राकृतिक रुप से अनाज का उत्पादन भी घट गया है।
हम तो केवल विकास करने और विकसित होने में ही सारा समय गवा बैठे हैं जिसमें भावनाओं कोई भी कोई जगह नहीं दी है और यहां तक कि चाल्र्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को इतना पीछे गए हैं केवल यहां पर केवल अस्वच्छता और एवं खंडहर ही शेष रह गया है। ब्रिटिश भारत में भी अंग्रेजो ने उन्ही भारतीययों को अपने प्रशासनिक व्यवस्था में जगह दी थी, जो लोग शिक्षित होने के साथ-साथ स्वच्छता को भी अपनाए हुए थे। स्वच्छता को लेकर के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बहुआयामी कार्यक्रम करवाएं। सरकार ने भी कई स्वच्छता अभियान चलाए हैं यदि आप स्वच्छता से अलंकृत है तो किसी भी प्रकार का रोग-विराग आपको ग्रसित नहीं कर सकता।
अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, समय अभी भी है हम अपने आप को सुधारने अपने व्यवहार एवं आचरण में परिवर्तन लाएं तभी हम अपने आने वाली पीढ़ी को शुद्ध आबोहवा एवं नीर की अच्छी सौगात दे सकेंगे, जैसा कि हमारे पूर्वजो ने हमें दिया है नहीं तो केवल यह रह जाएगा कि ‘‘आपने हमारे लिए छोड़ा ही क्या है’’? आइए हमस ब प्रण करें हम इस पृथ्वी से गंदगी को बाहर निकाल फेकेगें एवं स्वच्छता को अपनाकर पर्यावरण को संतुलित करेगें और आने वाली पीढ़ी का स्वागत करे।
‘‘ स्वच्छ रहे-स्वस्थ रहे’’
धन्यवाद

लेखक
महेश कुमार तिवारी

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