अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में सभी महिलाओं को सादर भेट

(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में सभी महिलाओं को सादर भे )
माॅं
तुम गुलाब का फूल हो या फूलों की रमणीय विविधता हो।
तुम वसुंधरा की हरियाली हो या इंन्द्रधनुष की विभिन्नता हो।।
तुम गहरे रंगो की अमिट छाप हो या फिर दुखों की हर दाता हो।
तुम सूर्य सा दीप्तिमान हो या मयंक की शीतलता हो।।
तुम बारिष में छत हो या कड़ी धूप में घनी छांव का अस्तित्व हो।
तुम कामधेनु(गउ) सी दानी हो या अन्नपूर्णा माता हो।।
तुम गोचर सी शांत हो या धरा की सहनशीलता हो।
तुम दामिनी सी तेज हो या अंधकार में दीपक हो।।
तुम रानी लक्ष्मीबाई हो या दीपदान (राजस्थान का प्रख्यात चरित्र) की माता हो।
तुम सूर्योदय की लालिमा हो या दिवस अभिलाषा हो।।
तुम रूई या कोमल हो या वज्र सी मेरी रक्षक हो।
तुम वाणी में मां सरस्वती हो या दामिनी में काली माता हो।।
तुम भावी का पुलकित कल हो या वर्तमान की आशा हो।
तुम मखमली बिछावन ना हो या घर की पूर्ण परिभाषा हो।।
तुम आस्था का केन्द्र बिंदु हो या पूजा की मर्यादा हो।
तुम सिंह वाहिनी सी गरज हो या सरस्वती की मृदु भाषा।।
तुम धन की चपल चलअंता(लक्ष्मी) हो या संतोषी माता हो।
तुम बाल रूप में ब्रम्हा, विष्णु, महेष की अनसुया सी माता हो।।
तुम सावित्री सा चरित्र हो या यम के ऊपर जीत की परिभाषा हो।
तुम सीता की अग्नि परीक्षा हो या अहिल्या सी आशा हो।।
तुम यषोदा का वात्सल्य हो या कौषल्य की करूणा हो।
मैं राम बन ना पाऊं पर तुम ही मेरी कौशल्या सी माता हो।।
मैं नहीं जानता तुम आदि हो या अनंत हो इति हो या प्रारब्ध हो।
पर तुम जो कुछ भी हो रिश्तो के विभिन्न रूपों में केवल मेरी माता हो।।
तुम ममता की मूरत हो या त्याग और बलिदान की परिभाषा हो।
तुम इस संसार की जगत जननी जगदम्बिका माता हो।।
तुम आदि हो अनंत हो…
लेखक-महेश कुमार तिवारी