कमीशन खोरी के चक्कर में कोरोना संकट से निपटने के लिए हसदेव क्षेत्र में लाखों खर्च कर घटिया किस्म के मास्क और पीपीई किट बाजार से चार से पांच गुना दरों पर क्रय किए गए
प्रधान संपादक सुनील चौरसिया की कलम से

अनूपपुर। कोरोना कॉल में कोरोना संकट से निपटने के लिए कोविड 19 के तहत एसईसीएल मुख्यालय ने अपने सभी क्षेत्रीय मुख्यालयों को लाखों का फंड आवंटित किया था, इसी कड़ी में कोरोना के नाम पर मेडिकल सामानों की खरीदी में कोल इंडिया के एसईसीएल उपक्रम के हसदेव क्षेत्र में लाखों का वारा-न्यारा किया गया है जहां एक ओर मेडिकल सामानों की खरीदी में इनकी क्वालिटी का ख्याल नहीं रखा गया है। वही दूसरी तरफ घटिया स्तर के सामानों की खरीदी कर लाखों की क्षति कोल इंडिया को पहुंचाई गई है इतना ही नहीं इन घटिया सामानों के उपयोग करने से जिस उद्देश्य के लिए इन सामानों को क्रय किया गया है कभी वह उद्देश्य पूरा नहीं होगा डॉक्टर इन सामानों का उपयोग आखिर कैसे करेंगे क्योंकि उनका उद्देश्य पूरा होगा ही नहीं,ज्ञात हो की क्रय किये गए सामानों का स्तर इतना घटिया है कि इसका उपयोग करना या न करना कोई मायने नहीं रखता है ,हसदेव क्षेत्र के भंडार विभाग में पदस्थ एके भक्ता (वरीय प्रबंधक )भंडार के द्वारा जारी आपूर्ति आदेश po no:secl/hsd /cms /stores/nrc/20-21/05 दिनांक 10 अप्रैल 2020 ,आपूर्ति आदेश po no:secl/hsd /cms /stores/nrc/20-21/07 दिनांक 13 अप्रैल 2020 एवं आपूर्ति आदेश po no:secl/hsd /cms /stores/nrc/20-21/08 दिनांक 14 अप्रैल 2020 को मेंसर्स वर्षा सर्जिकल एंड मेडिकल ,बी के टावर बलदेव बाग जबलपुर को आपूर्ति आदेश जारी कर 10 मार्च से 14 मार्च के बीच कोरोना संकट के निपटने के लिए N 90 मास्क ,पीपीई किट, सर्जिकल मास्क 3 लेयर, सर्जिकल कैप ,हाइपो क्लोराइड सॉल्यूशन ,थर्मल स्कैनर नॉनकॉन्टैक्ट थर्मामीटर , N -90 मास्क विथ रेस्पिरेटर ,पीपीई किट 80 जीयसम क्रय किया गया है,अब कागजों में तो लाखों के सामान की खरीदी कोरोना संकट से निपटने के लिए कर ली गई है परंतु इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है अधिकारी के द्वारा आपूर्ति आदेश जारी करते वक्त किसी भी सामान के ब्रांड एवं कंपनी का उल्लेख नहीं किया गया है जिसका परिणाम यह है कि आपूर्तिकर्ता फर्म ने रद्दी स्टाक को लाखों में बेच दिया, बिना ब्रांड के सामानों को बाजार से दोगुना और तीन गुना दरों पर एसईसीएल को सप्लाई कर दिया है ,इन घटिया स्तर के सामानों से किसी भी प्रकार से किसी भी मेडिकल स्टाफ को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है आलम यह है कि जिस n 95 मास्क को क्रय किया गया है आपूर्ति आदेश में तो n 95 का जिक्र है पर किसी ब्रांड या कंपनी का नाम उल्लेख नहीं है इसीलिए आपूर्तिकर्ता ने N 90 मास्क की जगह जगह यफपीपी -1मास्क जो डस्ट को रोकने के लिए उपयोग होता है वह मास्क दे दिया है, जिसकी बाजार में कीमत मात्र 40 से ₹50 है यह लगभग ₹290 में आपूर्ति की गई है ,अब इस मास्क के सहारे कैसे कोरोना के खतरनाक वायरस को रोक र पाएंगे ? वो भी उस कोरोना के वायरस को जिस कोरोना ने विश्व के लगभग 200 देशों को अपनी चपेट में ले लिया है और विश्व भर के 50 लाख मरीज से भी ज्यादा मरीज संक्रमित हो चुके हैं, भारत में भी संक्रमित मरीजों की संख्या भी 01 लाख से ऊपर पहुँच गई है,ऐसी परिस्थितियों में इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि डस्ट को रोकने वाले मास्क से कोरोना के अति छोटे वायरस को रोकने की एक अनोखी पहल इन अधिकारियों ने कैसे कर दी, इसी प्रकार से पीपीई किट का कोई ब्रांड नहीं है जो क्रय किया गया है इन पीपीई किट में लेमिनेशन और टेपिंग भी नहीं है बहुत ही घटिया किस्म का पीपीई किट क्रय किया गया है और औसतन साइज में यह किट बहुत छोटे हैं जो आसानी से डॉक्टरों को पहनने में बड़ी दिक्कत होगी और कई डॉक्टरों को तो यह पीपीई किट पहनने में भी नहीं आ पाएगा बहुत ही घटिया स्तर का नॉन ब्रांडेड और साइज में छोटे पीपीई किट क्रय किया गया है जिसके सहारे डॉक्टर कोरोना के जंग में युद्ध लड़ेंगे, सर्जिकल मानक के विपरीत थ्री लेयर नॉन ब्रांडेड मास्क भी बाजार से अधिक मूल्य में क्रय किए गए हैं, सोडियम हाइपोक्लोराइट सैनिटाइजिंग के लिए क्रय किया गया है जिसकी खुले बाजार में 40 से ₹50 मूल्य है और यह आपूर्तिकर्ता के द्वारा लगभग 180 प्रति लीटर में आपूर्ति की गई है मतलब खुले बाजार से लगभग 4 गुना अधिक दर में जबकि यह सभी मेडिकल के समान आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत आते हैं और बाजार में अधिक मूल्य में विक्रय किया जाना अपराधिक मामले के अंतर्गत आता है, नॉन कांटेक्ट थर्मामीटर खुले बाजार में 3500 से 5000 के आसपास ब्रांडेड कंपनी के आसानी से मिल जाते हैं और इन्हें लगभग 8000 में क्रय किया गया है वह भी घटिया स्तर क यह सभी मेडिकल के सामान मध्यप्रदेश के जबलपुर से क्रय किए गए हैं, जबकि एसईसीएल उपक्रम के अन्य बहुत सारे क्षेत्रों ने बिलासपुर या रायपुर से इसी प्रकार के सामानों को क्रय किया है, सवाल यह उठता है कि जब जोहिला, सोहागपुर, जमुना कोतमा क्षेत्र ये जबलपुर के नजदीक हैं फिर भी इन क्षेत्रों ने जबलपुर के बजाय बिलासपुर और रायपुर से मेडिकल के इन सामानों को क्रय किया है तो फिर ऐसी स्थिति में हसदेव क्षेत्र के द्वारा जबलपुर से ये सभी सामान क्रय किया जाना अपने आप में संदेह और सुनियोजित तरीके से किये गए भ्रष्टाचार की ओर इंगित करता है ,इतना ही नहीं इस सामान को क्रय करने के लिए एक सीनियर अधिकारी ए.के. भक्ता को 12 अप्रैल दिन रविवार को एंबुलेंस से ऑफिशियल टूर पर जबलपुर भेजा गया है और आने पर 14 दिन के लिए इन्हें क्वॉरेंटाइन भी किया गया था, सवाल यह उठता है कि ऑनलाइन के इस दौर में सामानों का क्रय करने के लिए आखिर जाकर खरीदने की क्या जरूरत आन पड़ी थी ? इस आने जाने में ही लंबे चौड़े भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी ,फर्म को फायदा पहुंचा कर अपनी कमीशन लेने जैसी बहुत सारी बातें छुपी हुई हैं। चर्चा तो यह भी है कि इस आपूर्ति आदेश को जारी करने के समय क्षेत्र में पूर्व में पदस्थ महाप्रबंधक विश्वजीत चौधरी वर्तमान समय में ये कोल इंडिया लिमिटेड के नार्दन कोलफील्ड लिमिटेड में पदस्थ है इनके द्वारा भक्ता की भक्ति में लीन होकर और माया जाल में फसकर लाखों की कमीशन पहले ही ले ली गई थी जिसका परिणाम था कि जब आपूर्तिकर्ता ने यह सामान दिया तो पूर्व में पदस्थ महाप्रबंधक ने जबरदस्ती दबाव बनाकर डॉक्टरों की टीम को अपने मुख्यालय हसदेवक्षेत्र में बुलाकर घटिया किस्म के सामग्री को हैंडओवर लेने के लिए दबाव बनाया गया, खबर यह भी है कि डॉक्टरों ने इस घटिया सामानों को लेने से इंकार कर दिया तब हसदेव क्षेत्र के कई अधिकारियों का पैनल सेंट्रल हॉस्पिटल मनेन्द्रगढ़ पहुंचा और वहां पर इन चीजों को रिसीव करने के लिए काफी दबाव बनाया तब डॉक्टरों ने विरोध किया कि घटिया स्तर नान ब्रांडेड और हमारे नाफायदे की चीजें जो हमारे जीवन को रक्षा ना करें तो हम इन सामग्री को कैसे अच्छा कह कर इसे प्राप्त कर लें ,तब अधिकारियों ने कहा कि जो सामग्री जिस रूप में आपको दी जा रही है उसी रूप में आप रिसीव कर लीजिए तब जाकर बीच का रास्ता निकला और सामान कुछ डॉक्टरों के संयुक्त हस्ताक्षर करके रिसीव किया गया,बस यही हस्ताक्षर करवाकर भक्ता ने अपने भक्ति की पूरी कीमत वसूल कर ली, आलम यह है कि इमरजेंसी में खरीदा गया यह सारा सामान घटिया किस्म का होने की वजह से इसका उपयोग आज तक सही तरीके से नही किया जा रहा है ,अप्रैल महीने में कोरोना संकट काल में क्रय किए गए सम्मान अभी तक समाप्त नहीं हुए हैं ,लेकिन अप्रैल महीने में 5 दिनों के अंदर ही N- 95 मास्क के तीन आर्डर और पीपीई किट के 2 आर्डर दिए गए थे वो सिर्फ क्या कमीशन खोरी के लिए दिए गए थे? जब सामानों का उपयोग नहीं करना था तो आखिरी आर्डर क्यों दिए गए? यह एक बड़ा सवाल है ।ज्ञात हो कि आपूर्तिकर्ता को भुगतान तभी हो सकता है जब सामान रिसीव हो जाए और सामान रिसीव कराना उस अधिकारी की जिम्मेदारी और गले की हड्डी बन गई थी जिस अधिकारी ने घटिया सामान को क्रय किया था, इस मामले में जहां स्टोर के सीनियर अधिकारी भक्ता का अहम रोल है वही क्षेत्र के पूर्व महाप्रबंधक (खनन) और मटेरियल विभाग में पदस्थ अधिकारी के कारनामों में मिलीभगत की बू आ रही है ,इन सामानों को क्रय करने के लिए 3 नोटशीट बनाए गए थे यह लगभग 15 लाख रुपए के सामानों की खरीदी के लिए बनाए गए थे,इन सामानों को क्रय करने के लिए पूर्व में पदस्थ महाप्रबंधक ने बहुत ही ज्यादा तेजी दिखाई वह तेजी इस बात की नहीं थी कि कोरोना संकट से निपटने के लिए डॉक्टरों को अच्छी और बेहतर मेडिकल सुविधा प्रदाय हो सके बल्कि वह तेजी इस बात की थी कि स्थानांतरित हो चुके महाप्रबंधक जाने के पहले आपूर्ति आदेश जारी करा कर अपने हिस्से का कमीशन लेना चाह रहे थे और हुआ भी ऐसा ही ,इस पूरी खरीदी से एक बात तो स्पष्ट हो गई कि डॉक्टरों की रक्षा और कोरोना संकट से लड़ने के लिए इन सामानों की खरीदी नहीं की गई है बल्कि इन सामानों की खरीदी कुछ अधिकारियों ने अपनी जेबों को गर्म करने के लिए की थी, है,आखिर एसईसीएल के वे सभी अधिकारी जो इस भ्रष्टाचार में शामिल है उन्हें घटिया सामान खरीद कर डॉक्टरों की जान से खिलवाड़ करने का अधिकार किसने दिया है ? आज कोरोना संकट के समय में जहां स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी, प्रशासन ,पुलिस सहित अन्य बहुत सारी एजेंसियां अपनी जान हथेली पर रखकर देश की सेवा कर रहे वहीं कोल इंडिया के कुछ अधिकारी लाखों की कमीशन के चक्कर में इन डॉक्टरों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं, आखिर डॉक्टरों की जान से खिलवाड़ करके यह अधिकारी इस तरह की होली क्यों खेल रहे हैं? इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच करके मामले में दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही किए जाने की नितांत आवश्यकता है वही कोल इंडिया के लाखों रुपए की होली खेलने वाले अधिकारियों से इस पैसे की रिकवरी भी की जानी चाहिए, इस मामले में मुख्य किरदार निभाने वाले हसदेव क्षेत्र में पदस्थ वरिष्ठ प्रबंधक भंडार ए.के.भक्ता की भूमिका भी बहुत संदिग्ध और महत्वपूर्ण है। बताया जाता है कि इसी अधिकारी ने इस पूरे साजिश को रचा और भ्रष्टाचार की होली खेली, इस भ्रष्टाचार को अंजाम तक पहुंचाया । एसईसीएल के गेवरा में पदस्थापना के दौरान भी इस अधिकारी के द्वारा जमकर कोल इंडिया के राशि की होली खेली गई थी तब भी मामलों की जांच विभाग के द्वारा की गई है पर अपनी चालाकी से ये हर बार बचते नजर आए, ऐसा ही कारनामा हसदेव क्षेत्र में भी अपनी सेवानिवृत्ति के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके इसअधिकारी के द्वारा किया जा रहा है इस अधिकारी के अलावा सामग्री क्रय विभाग के हसदेव क्षेत्र के मुखिया और पूर्व में पदस्थ महाप्रबंधक (खनन )की मिलीभगत से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। अधिकारियों के द्वारा संगठित तरीके से लाखों रुपए की होली कोरोना के संकट से निपटने के नाम पर की गई है. जो किसी भी स्तर पर ठीक नहीं है, और कोरोना जैसे संकटकाल में घटिया सामग्री डॉक्टरों को प्रदाय किया जाना किसी भी स्थिति परिस्थिति में उचित नहीं है आखिर इन डॉक्टरों के जीवन से खिलवाड़ करने का अधिकार इन अधिकारियों को किसने दिया ?ऐसे ही कई सवाल उठ खड़े हो रहे हैं, इन सवालों के जवाब जांच के उपरांत ही मिल पाना दिखाई पड़ रहा है।