कोरोना काल में खुद को मानसिक रूप से रखें स्वस्थ्य न हों डिप्रेशन के शिकार-साधना
रिपोर्टर@समर बहादुर सिंह

अनूपपुर। कोरोना वायरस से होने वाले डर की वजह से दुनियाभर में लोग अवसाद (डिप्रेशन)का शिकार हो रहे हैं और ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है इस वक्त हमारे देश में लगभग 10% लोग गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रस्त है जो कि पूरे विश्व के कुल मानसिक रोगियों का 15% है, जिसके परिणाम स्वरूप भारत में प्रति घंटे 15 व्यक्ति व प्रतिवर्ष 1.31 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं जबकि भारत में प्रति 10 मानसिक रोगी में से एक को इलाज मिल पाता है,मानसिक स्वास्थ्य से तात्पर्य मानसिक रोग उन दोषों का अभाव तथा मानसिक कार्य व्यवस्था के उचित संचालन से है, जो व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं उनके व्यवहार में संयम संतुलन तथा एकरूपता पाई जाती है व आकांक्षा का उच्च स्तर पाया जाता है जिसे हम साधारण भाषा में पॉजिटिव होना कहते हैं, जिसमें इस अवस्था का अभाव होता है वह कई तरह के मानसिक रोगों से घिर जाते हैं जिसके कारण उनमें ईर्ष्या, द्वेष, प्रतिकार, अंधविश्वास तथा असमंजस जैसे विकार उत्पन्न हो जाते हैं। हम में से अधिकांश लोग अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान देते हैं, किंतु मानसिक स्वास्थ्य पर बिल्कुल भी ध्यान नही दे पाते हैं,जिससे अनेकों प्रकार की नकारात्मकता समय के साथ हमारे दिमाग में घर कर जाती है और बाद में शारीरिक विकृति के रूप में बाहर प्रकट होती है। मानसिक स्वास्थ्य में शामिल होता है, मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगों का उपचार करना। शारीरिक स्वास्थ्य तथा मानसिक स्वास्थ्य में बस एक मात्र अंतर यह होता है कि हम शारीरिक समस्याओं को देख सकते हैं लेकिन मानसिक समस्याओं को महसूस किया जा सकता है। मानसिक समस्याओं के बढ़ने का मुख्य कारण यह है कि लोगों में इसके प्रति जागरूकता का अभाव होता है जिसके कारण मानसिक रोगी होने पर उपचार कराने के स्थान पर रोगी या उसके परिजन अंधविश्वास में पड़कर झाड़-फूंक में अपना समय व पैसे की बर्बादी करते हैं ।आइए जानते हैं आखिर डिप्रेशन है क्या? इसका मुख्य लक्षण है मन का उदास होना ,पढ़ाई नौकरी या किसी भी रिश्ते में रुचि न रह जाना ,आत्मग्लानि थकान भूख कम या बहुत अधिक लगना नींद में कमी नींद टूट-टूटकर आना, नींद आने में दिक्कत महसूस होना, बहुत ज्यादा सोने का मन करना, एकाग्रता न रह जाना तथा आत्महत्या का विचार मन में आना। जब 2 हफ्ते से ज्यादा यह लक्षण किसी भी व्यक्ति में आ रहे हो तो इसे अवसाद (डिप्रेशन)की श्रेणी में रखा जाता है।जरूरी नहीं है कि कुछ बुरा या खराब होने पर ही रोगी में यह लक्षण आते हैं बल्कि बिना किसी वजह से भी यह लक्षण महसूस किए जा सकते हैं इसके दो कारण होते हैं पहला साइकॉटिक और दूसरा बायोलॉजिकल कारण जो केमिकल चेंज की वजह से होता है। साइकॉटिक कारण से तात्पर्य सोच में नकारात्मक विचारों का होना है जैसे कि क्लास में बैठे विद्यार्थी को यदि कुछ समझ में नहीं आ रहा है तो वह यह सोचने लगता है कि मुझ में ही कुछ कमी है और मैं पढ़ नहीं सकता, इस तरह एक नेगेटिव विचारों की श्रंखला बन जाती है।चिंता भी इसका एक महत्वपूर्ण कारक है जिसके कारण धड़कन बढ़ जाना ,हार्ड अटैक आ सकता है ऐसा बार-बार महसूस होना, मसल्स का खींचा खींचा लगना, हथेलियों में पसीना आना, हाथों का कांपना, हाथ ठंडे पड़ जाना, पेट खराब होना, पेशाब जल्दी जल्दी आना साइकॉटिक लक्षण है ।यदि परिवार में किसी को चिंता है तो उसके बच्चों पर भी इसके जन्म या विस्तार होने की संभावना बढ़ जाता है या यूं भी कह सकते हैं कि कई जेनेटिक बीमारियों की तरह ही यह भी एक जेनेटिक ही है। कई बार तो आसपास का वातावरण भी व्यक्ति को प्रभावित करता है और शरीर में केमिकल की कमी होने से भी चिंता के लक्षण प्रकट हो जाते हैं इनकी चिकित्सा तीन प्रकार से की जा सकती है काउंसलिंग के माध्यम से, दवाइयों के माध्यम से या काउंसलिंग या दवाइयों को संयुक्त रूप से मिलाकर इसलिए ऐसे लक्षण पाए जाने पर समय को व्यर्थ ना करते हुए अपने नजदीकी काउंसलर या साइकोलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए।कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन के कारण भारत में आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ने से बेरोजगारी दर बढ़कर 27.11 फीसदी पर पहुंच गई। देशव्यापी लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियां बिल्कुल ठप्प पड़ गईं, जिसके बाद अधिकांश विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों ने अब इस वित्तीय वर्ष के लिए देश के सकल घरेलू उत्पाद के संभावित गिरावट की भविष्यवाणी की है. एमएसएमई और असंगठित क्षेत्र में रोजगार तेजी से घटने की संभावना जताई जा रही है और यही बेरोजगारी लोगों को अपने भविष्य के लिए चिंता का कारण है ।कोरोना काल में स्वयं को मानसिक रूप से स्वस्थ कैसे रखें – हम सभी की दिनचर्या बदल गई है जिसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है इसलिए अपनी दिनचर्या का उपयुक्त समय निर्धारित करें जैसे सोने एवं जागने का समय ,रविवार का समय ,परिवार के साथ भोजन का समय, वर्क टू होम इत्यादि,व्यायाम एवं अपने सकारात्मक विचारों वाले मित्रों से बात करने को अवश्य अपनी दिनचर्या में शामिल करें जो आपके नियंत्रण में है उस पर ध्यान दें जैसे सोशल डिस्टेंसिंग, साफ-सफाई ,स्वयं को घर में रखना पर कुछ चीजें हमारे नियंत्रण में नहीं है जैसे यह महामारी कब खत्म होगी इसे सोचकर नकारात्मकता की ओर ना झुके और परिस्थितियों को स्वीकार करें तथा स्वयं को महसूस कराएं कि यह विपत्ति सिर्फ आपके लिए नहीं पूरी दुनिया के लोगों के लिए आई है। जरूरी है कि प्रकृति के साथ जुड़ाव रखें बागवानी में समय दें, पालतू जानवरों के साथ समय बिताएं क्योंकि दिमाग हमेशा ऑब्जरवेशन मोड पर होता है इसलिए सकारात्मक बातों को ऑब्जरवेशन करें। इस खाली समय को क्रिएशन में बदलें जैसे कि आपके छूटे हुए शौक जैसे गाना गाने ,चित्र बनाने ,कुकिंग सहित उन चीजों पर समय दे जो सकारात्मक और आपकी रुचि के हों।समाज के लिए आप एक जिम्मेदार व्यक्ति हैं इसलिए सोशल मीडिया पर कोरोना को लेकर नकारात्मक व फेक न्यूज़ पोस्ट ना करें इससे पैनिक बढ़ता है ।कोशिश करें कोरोना वायरस सम्बंधित न्यूज़ कम से कम देखें और अपने इम्यून सिस्टम को बढ़ाने के लिए स्वास्थ्यवर्धक आहार लें क्योंकि कोरोना से लड़ने के लिए अंदरूनी रूप से मजबूत होना बहुत जरूरी है।सरकार को भी चाहिए कि लोगों के मानसिक अवसाद को दूर करने के लिए सकारात्मक उपाय करें इसी क्रम में सबसे बेहतर प्रयास चीन में देखा गया था यहां सरकार ने सेल्फ क्वॉरेंटाइन के पहले फेस में ही वहां शहर में साइकोलॉजिस्ट और सायकायट्रिस्ट की टीम को पहुंचा दिया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक कहा गया था कि वर्ष 2020 के समाप्ति तक भारत की 20% जनसंख्या का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा इसलिए सरकार को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। स्वयं को महसूस कराएं कि यह बुरा वक्त भी बहुत जल्दी ही व्यतीत हो जाएगा और इसके बाद आपको जीवन में किस दिशा की ओर अग्रसर होना है उस योजना पर सुरक्षित रहकर कार्य करना चाहिए। उक्त आशय के विचार एक औपचारिक भेंट में अनूपपुर जिले के कोयलांचल क्षेत्र भालूमाडा में रहने वाली साधना तिवारी साइकोलॉजिस्ट ने देश,प्रदेश क्षेत्र और जिले की जनता को डिप्रेशन से बचने के लिए अपने विचार व्यक्त किया।