*नौनिहालों को आपदा में मत डालो: सीपीआई* *पिछले दरवाजे से स्कूल खोलने का फैसला वापिस लो
*नौनिहालों को आपदा में मत डालो: सीपीआई*
*पिछले दरवाजे से स्कूल खोलने का फैसला वापिस लो*
संतोष चौरसिया
*अनूपपुर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की मध्यप्रदेश इकाई ने शिक्षकों की सलाह लेने के नाम पर शालाओं को 21 तारिख से खोलने के फैसले का विरोध करते हुए इसे तुरंत वापिस लेने की मांग की है. पार्टी का स्पष्ट मानना है कि अभी कोरोना की महामारी अपने चरम पर है और इस समय बच्चों को शालाओं में बुलाने का फैसला उन्हें बेवजह संकट में डालने वाला साबित हो सकता है. इसलिए बेहतर यही होगा कि फ़िलहाल इस फैसले को ताल दिया जाए जब तक कि हालात अनुकूल नहीं हो जाते.
सीपीआई के राज्य सचिव अरविन्द श्रीवास्तव और राज्य परिषद सदस्य विजेन्द्र सोनी एडवोकेट ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि विगत एक माह से देश में कोरोना का संकट बहुत तेजी से बढ़ रहा है और प्रतिदिन एक लाख के करीब संक्रमण के नए मामले सामने आ रहे हैं और अह पूरी दुनिया में आने वाले मामलों का तकरीबन आधा है. अर्थात दुनिया भर में नए संक्रमित होने वाले लोगों में हर दूसरा मरीज भारत से है. प्रतिदिन होने वाली मौतों की संख्या भी अचानक से बहुत बढ़ गई है. पहले से ही संकट में पड़ी देश की स्वास्थ्य सेवाए मरीजों की बढती संख्या को संभल पाने में असमर्थ दिखाई दे रही हैं. हर दिन कहीं न कहीं से इस तरह के विचलित कर देने वाले समाचार भी समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रहे हैं.
संक्रमण की स्थिति इस कदर भयभीत करने वाली है की मध्यप्रदेश के हाई कोर्ट को फ़िलहाल बंद कर दिया गया है और विधानसभा के सत्र को एक दिन का कर दिया गया है. संसद के सत्र की अवधि भी घटाने के समाचार मिल रहे हैं. ऐसे अवसर पर बच्चो के लिए स्कूल खोल देने का फैसला बहुत ही अविवेक और असंवेदनशीलता का प्रमाण है. कहीं हम बच्चों के जीवन को विधायको और सांसदों से कम कीमती तो नहीं मान रहे हैं . उस पर भी आपत्तिजनक बात है कि बच्चों के स्कूल जाने के लिए अभिभावकों के ऊपर सहमती पत्र प्रदान करने का दवाब बनाया जा रहा है. अर्थात कोई दिक्कत होने पर शाला प्रबंधन अपनी जिम्मेवारी से बचकर सारा दोष पालको पर डालकर साफ़ बच जाएगा.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इस कदम की आलोचना करती है और सरकार से आग्रह करती है कि वह अपने इस फैसले को प्रदेश के बच्चों के व्यापक हित में वापिस ले. यह बात सही है कि ऑनलाइन शिक्षा भी कोई सशक्त विकल्प नहीं है इसलिए वर्तमान सत्र के बारे में प्रभावशाली फैसला लेने के लिए शिक्षाविदों और छात्र-शिक्षक संगठनों की एक समिति बनाकर उसकी अनुशंसाओं के आधार पर आगामी कदम उठाए. लेकिन 9से12तक की क्लास doubt clearance(शंका निवारण)के लिए दोघंटे के लिए खोली जा रही हैं ।यह निर्णय निजी स्कूल संगठनों के दबाव में लिया गया है जिसका उददेश्य मैनेजमेंट फी, कंप्यूटर फी, योगा फीस आदि के नाम पर कमाई के अलावा यूनिफार्म और किताब प्रकाशकों से मिलने वाले कमीशन की कमाई है।वर्तमान में यूनिफार्म और किताब खरीदने की बाध्यता नहीं है यह फरमान निजी स्कूलो के लिए ही खास तौर पर जारी किया है जिसमें भ्रष्टाचार साफ दिख रहा है क्यो कि अभी न्यायालय से केवल टयूशन फीस लेने की अनुमति है