अनूपपुर

मध्य प्रदेश की सीमा में प्रवेश करने के बाद मजदूरों की प्रशासन नही कर रहा कोई चिंता

मध्य प्रदेश की सीमा में प्रवेश करने के बाद मजदूरों की प्रशासन नही कर रहा कोई चिंता

छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले से नियमों को ताक पर रखकर मजदूरों को बॉर्डर तक छोड़ा जा रहा

मध्य प्रदेश की सीमा में प्रवेश करने के बाद मजदूरों की प्रशासन नही कर रहा कोई चिंता

सूरजपुर जिले में अब तक 06 संक्रमित मरीजों के पाए जाने की हो चुकी है पुष्टि* *प्रशासन की लापरवाही अनूपपुर जिले सहित मध्य प्रदेश के अन्य जिलों के लिए कंही भारी ना पड़ जाए

सुनील चौरसिया की कलम से

अनूपपुर*— अजब गजब की स्थितियों के बीच कोरोना संकट से मध्य प्रदेश का अनूपपुर जिला अब लड़ाई लड़ रहा है ,शासकीय खानापूर्ति को दरकिनार कर दे तो जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है, कहीं मध्य प्रदेश का बॉर्डर जो अनूपपुर जिला के अंतगर्त नेशनल हाईवे 43 पर ग्राम पंचायत डोला में स्थित इस बॉर्डर के माध्यम से कोरोना के संभावित संक्रमित दर्जनों की संख्या में छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश में प्रवेश कर रहे हैं,अगर इनके संक्रमित होने में थोड़ी भी वास्तविकता निकली तो मध्य प्रदेश के अंतिम छोर में स्थित अनूपपुर जिले से यह संक्रमित कोरोना के मरीज अनूपपुर, शहडोल, उमरिया कटनी सहित और अन्य कई जिलों को प्रभावित कर सकते हैं,तब स्थिति कितनी भयावह होगी इसकी कल्पना साथ प्रशासन नहीं कर पा रहा है, और यदि कर भी पा रहा है तो शायद इनके पास इतना साधन सुविधा नहीं है कि समस्याओं का यह सामना कर सके, बहुत बड़ा सवाल यह है कि जब नेशनल हाईवे 43 पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों ने अपने-अपने बॉर्डर को सील करके रखा है तो एक भी व्यक्ति बिना अनुमति या बिना पास के कैसे बॉर्डर क्रास कर पा रहा है? यदि शासन की मंशा के हिसाब से यह सब किया जा रहा तो मापदंडों का पालन क्यों नहीं हो रहा है? छत्तीसगढ़ से आने वाले मजदूरों को बॉर्डर पर ही उनका थर्मल स्क्रीनिंग/हेल्थ चेकअप करा कर उनको वहीं से उनके गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था प्रशासन क्यों नही कर रहा है ?आखिर आपदा के नाम पर लाखो करोड़ो का वारा न्यारा करने वाला प्रशासन क्यों मूकदर्शक बना बैठा है ? कंही प्रशासन की यह लापरवाही आने वाली एक बड़ी त्रासदी की ओर इशारा तो नही कर रहा ? यह 57 मजदूर(बच्चों ,महिलाओं सहित) सपरिवार वे है जो वास्तविक तरीके से बॉर्डर को क्रास करके मध्यप्रदेश में पहुँचे हैं इनमें से कुछ मजदूर किसी किसी माध्यम से चले गए हैं, अभी भी समाचार लिखे जाने तक 28 मजदूर नेशनल हाईवे रोड 43 के ग्राम झिरियाटोला में शासन के इंतजाम का इंतजार कर रहे हैं कि वह अपने घर तक पहुंच सके, इन सारे घटनाक्रमों से सवाल यह उठता है कि जब इन आने वाले लोंगो का इंट्री कहीं पर नहीं होगा और यदि संक्रमण फैला इनकी वजह से तो तरह से प्रशासन कांटेक्ट हिस्ट्री और ट्रैवल हिस्ट्री निकालते रहेंगे, मतलब साफ है अंधेरे में तीर मारते रहिए चल गया तो प्रशासन ने काम किया और नहीं चला तो महामारी है ,वाह प्रशासन वाह, आलम यह है कि मजदूर मध्य प्रदेश की सीमा में प्रवेश करने के बाद सड़को और बस्ती के बीच में घूम रहे दुकानों से सामान खरीद रहे यात्री प्रतीक्षालय और सरकारी भवनों के आसपास विश्राम कर रहें, यदि ये मजदूर संक्रमित हैं या इनमें से कोई भी संक्रमित हुआ तो इनके संपर्क में आने वाले समाजसेवी, मीडिया कर्मी, प्रशासन के लोग भी संक्रमित हो जाएंगे और ना जाने फिर यह कोरोना किस-किस घर तक पहुंच जाए ऐसे में शासन का लाक डाउन और कर्फ्यू फिर किस काम का? इन तस्वीरों को देखकर कोरोना के इस संकटकाल का अनुमान आप आसानी से लगा सकते हैं, छत्तीसगढ़ के प्रशासन के द्वारा सूरजपुर जिले से मध्य प्रदेश के बड़वारा, विजयराघवगढ़ ,कटनी क्षेत्र के रहने वाले मजदूरों को चोरी चुपके से धोखे में रखकर घर तक छोड़ने के बहाने छत्तीसगढ़ के बॉर्डर तक छोड़ कर 30 मई की रात को 57 सदस्यों को छोड़कर भाग गए ,आलम यह है कि पिछले 3 दिनों से यह मजदूर मध्य प्रदेश के अंतिम छोर पर ग्राम पंचायत डोला और रेउँदा के झिरिया टोला के बीच सड़कों पर रात गुजार रहे हैं, इनमें से कई मजदूरों को किसी प्रकार से इनके घर तक भेजा गया, पर अभी भी 28 सदस्य नेशनल हाईवे रोड क्रमांक 43 के ग्राम झरिया टोला में फंसे हुए हैं बड़ा सवाल यह है कि सूरजपुर जिले में भी कोरोना का कहर जारी है आज 2 मई की स्थिति में सूरज पुर में 6 कोरोना के संक्रमित मरीजों के मिलने की पुष्टि की गई है ऐसी स्थिति में उन क्षेत्रों से सूरजपुर के मंगल भवन में 28 दिन क्वारन्टीन होकर आए ये मजदूर जिनकी संख्या 57 थी,इनमें से कई मजदूरों को कुछ प्रशासन ने तो कुछ खुद ही यहां से आगे बढ़ गए हैं अभी 28 मजदूर छोटे-छोटे बच्चों के साथ सपरिवार झिरिया टोला आरटीओ चेक पोस्ट के पास यात्री प्रतीक्षालय में रुके हुए हैं ,सवाल यह उठता है कि यदि यह संक्रमित होंगे तो मध्यप्रदेश में प्रवेश करने के बाद पता नहीं कितनों को संक्रमित करते हुए निकल जाएंगे ? क्या एक राज्य से दूसरे राज्य में मजदूरों को छोड़ने का यही नियम है ?बॉर्डर पर जो चेक पोस्ट बनाए गए हैं वह एक व्यक्ति के आने-जाने पर हजार प्रकार के सवाल करते हैं तो सवाल यह उठता है कि दर्जनों की संख्या में यह मजदूर कैसे सीमा को पार कर रहे हैं? क्या राज्य सरकारों का यह दायित्व नहीं बनता है कि दोनों बॉर्डर पर दोनों राज्यों के जिम्मेदार अधिकारी और चिकित्सा टीम पहले चिकित्सीय परीक्षण करें और बाद में प्रशासन साधन की व्यवस्था करके इनको इनके घरों तक पहुंचाएं ? बहुत ही अजीब और विडंबना पूर्ण स्थिति है ऐसा प्रतीत होता है जैसे अनूपपुर जिले में बहुत सारा काम सिर्फ दिखावे के लिए हो रहा है, पर जमीनी स्तर पर काम सही तरीके से नहीं हो पा रहा यदि जमीनी स्तर पर काम होता तो यूं ही छत्तीसगढ़ से आए हुए मजदूर 3 दिन से इन क्षेत्रों में नहीं पड़े होते , ये अपने अपने घरों तक पहुँच गए होते, खैर कोरोना काल है सोशल मीडिया में प्रशासन वाहवाही लूटे या गरीबों के दर्द को समझते हुए उनकी मदद की जाए ? ये दोनों बातें अलग अलग हैं,सारा सिस्टम फेल फेल सा लगता है ,देखिए आगे क्या और कैसे समस्याओं को हल प्रशासन करता है, एक बहुत बड़ा सवाल यह भी उठता है कि जब नेशनल हाईवे राष्ट्रीय राजमार्ग 43 पर इस प्रकार से दूसरे राज्य से मजदूर सपरिवार आ रहे तो ग्रामीण क्षेत्रों में जो अन्तराजीय सीमाएं हैं उन सीमाओं पर क्या हाल होता होगा ? मतलब साफ है कि प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में दूसरे राज्यों से मजदूर बिना किसी प्रकार के शासकीय अनुमति, बिना चिकित्सीय परीक्षण के आ और जा रहे हैं , यह मध्य प्रदेश के लिए अच्छे संकेत नहीं है अनूपपुर जिला प्रशासन सहित मध्य प्रदेश सरकार को इस मुद्दे पर संज्ञान लेना चाहिए और ऐसी तरकीब निकालनी चाहिए कि हमारा प्रदेश, हमारा जिला, कोरोना संक्रमण से बहुत ज्यादा प्रभावित ना हो यदि शासन के पास खुद का मेकनिज्म कम है सीमित है तो क्षेत्र के एनजीओ, समाजसेवियों, जनप्रतिनिधियों और कई प्रकार के वर्गों से सहयोग लेकर इन सारे मामलों को अंजाम दिया जा सकता है पर….. ज्यादा बोलने से लॉक डाउन के मौके पर धारा 188 का हवाला देकर प्रशासन कलम और मुंह बंद कराने की तैयारी भी करता दिखाई पड़ता है

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