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जनजातीय आंदोलनकारियों के सामने झुका जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक लिखित में हुआ समझौता

रिपोर्टर@देवानंद विश्‍वकर्मा

अनूपपुर। जनजाति समाज द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय अमरकंटक के विरुद्ध 17 जून को किए जा रहे विभिन्न मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन के आगे झुकते हुए विश्वविद्यालय प्रबंधन आंदोलनकारियों से लिखित में समझौता कर लिया सूत्र बताते हैं कि विश्वविद्यालय प्रबंधन पर आंदोलनकारियों ने गंभीर आरोप लगाए थे उसी के दबाव में आकर विश्वविद्यालय प्रबंधन ने झटपट आंदोलनकारियों को विश्वविद्यालय परिसर के अंदर ले जाकर उनसे बातचीत की और लिखित में समझौते के लिए तैयार हो गए। ज्ञात हो कि पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के युवा नेता हीरा सिंह श्याम के नेतृत्व में यहां कार्यरत जनजाति समाज के कर्मचारियों द्वारा तथा आसपास के सैकड़ों जनजाति समाज के लोग विश्वविद्यालय पहुंचकर आंदोलन विश्वविद्यालय प्रबंधन के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे।
यह थे आरोप
युवा नेता हीरा सिंह श्याम द्वारा जनजातीय लोगों के हक को लेकर विश्वविद्यालय के विरुद्ध कई आरोप लगाए गए है जिसमे अभी तक दो कुलपतियों पर अपने क्षेत्रों के लोगों की नियुक्तियों का आरोप लगता रहा। वही अब विश्वविद्यालय के स्थापना के बाद नियुक्त हुए तीसरे कुलपति पर भी वही क्षेत्रवाद की नियुक्ति करने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया है साथ ही अन्य आरोप भी लगाए गए है। जब 2008 में विश्वविद्यालय की स्थापना हुआ था तब क्षेत्रीय लोगों की उपलब्धता शिक्षा में 95 प्रतिसत था लेकिन अब वही प्रतिशत कम होकर 5 से 10 प्रतिसत रह गया है जो दुर्भाग्यपूर्ण हैं व चिन्तनीय है, इंदिरागांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्विद्यालय इकलौता जनजातीय विश्वविद्यालय है, लेकिन दुर्भाग्य है जनजातीय समाज का की यहाँ जनजातीयो के लिए 50 प्रतिसत आरक्षण तक नहीं है जो दुर्भाग्यपूर्ण है जबकि अन्य विश्व विद्यालयो में उनके नाम से बने लोगो को 50 प्रतिसत आरक्षण दिया जा रहा है लेकिन जनजातियों के साथ ही बस भेद भाव विचारणीय है। इस विश्वविद्यालय में अपने अधिकार की बात करने वाले निचले क्रम के कर्मचारियों को भेद भाव पूर्ण कारवाही कर निकालने का प्रयास किया जा रहा है जिससे कोई जनजातीय समाज के व्यक्ति अपने अधिकार की बात न कर सके। इस तरह कृत्य पूरे जनजातीय समाज व क्षेत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। विश्व विद्यालय में पदस्त या वहाँ से जुड़े अन्य समाज के लोग जनजातीय समाज के लड़कियों को बहला फुसला के शादी कर के उनके नाम से यहाँ के भोले भाले लोगो गुमराह कर के यहाँ के जमीनों को ले ले कर जमीन जिहाद चलाने का कार्य किया जा रहा है जो क्षेत्र व समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। जनजातीय विश्वविद्यालय में जनजातीय समाज के नाम से आने वाले करोड़ो रूपये के वजट का बन्दर बाँट कर हड़प लिया जा रहा है जिसका क्षेत्र व समाज को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। जो बहोत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। जनजातीय समाज के लोगो को किसी भी प्रकार के नियुक्तियों में व व्यापार में व शिक्षा में आरक्षण नहीं दिया जा रहा जो दुर्भाग्यपूर्ण है। आप सभी क्षेत्रीय व जनजातीय समाज के सभी युवा व युवतियों से आग्रह है ये लड़ाई हम सब के अधिकार व हक की लड़ाई है और इसे हम सब को मिल के लड़ना है अगर आज हम इस हक के लड़ाई में शामिल नहीं हुए तो न हमारे क्षेत्र को कोई आरक्षण मिलेगा और न ही इस विश्वविद्यालय का यहाँ के क्षेत्रीय लोगो को कोई लाभ नही मिल पायेगा।
यह हुआ समझौता
आंदोलनकारियों और विश्वविद्यालय के बीच लगभग 20 बिंदुओं का समझौता किया गया जिसमें कोविड-19 लॉकडॉउन का पूरा पेमेंट दिया जाए , कोविड-19 लॉकडाउन के पेमेंट पश्चात ड्यूटी तुरंत दिया जाए ,जनजाति क्षेत्र में जनजाति विश्वविद्यालय होने के नाते जनजाति समाज व क्षेत्र वासियों को 50ः आरक्षण शिक्षा व सभी प्रकार के नियुक्तियां में दिया जाए क्षेत्र के लोगों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव ना किया जाए ,जिन अधिकारियों द्वारा अभद्रता पूर्वक व्यवहार किया उनके विरोध सख्त कार्रवाई की जाए विश्व विद्यालय परिषद में 8 घंटे की ड्यूटी के पश्चात किसी से काम न कराया जाए ,जनजाति क्षेत्र होने के नाते यहाँ जमीन जिहाद विश्वविद्यालय के कर्मचारी द्वारा किया जाता है उसे बंद किया जाए हर महीने के अंत में 10 से 15 दिवस के अंदर मानदेय राशि अहिरण किया जाए रोज, ड्यूटी सुरक्षा कर्मी आउटसोर्सिंग कर्मचारियों का मानदेय राशि अधिक भुगतान किया जाता है जो उचित दर में दिया जाए आने वाले इ टेंडरों में संशोधन किया जाए और जितने भी कार्यरत कर्मचारी हैं वह यथावत रहे और यदि भर्ती किया जाता है तो आसपास के क्षेत्र एवं 16 पंचायत जिन्हें विश्वविद्यालय ने गोद लिया है ग्राम पंचायतों के बेरोजगारों को प्राथमिकता दिया जाए, बैरक में जो लोग रहने के लिए इच्छुक कर्मचारी है उन्हें उन्हीं को ही बैरक में रखा जाए,आदि समझौता किया गया।

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