अनूपपुर

पंडित दीनदयाल जी की जयंती पर जिला स्तरीय संगोष्ठी संपन्न

अनूपपुर। पूरे भारतवर्ष में आजादी की 75वां वर्षगाँठ को आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। इसी उपलक्ष्य में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्मजयंती पर म.प्र. जन अभियान परिषद अनूपपुर द्वारा जिला स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन कलेक्ट्रेट अनूपपुर स्थित सोन सभागार में किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि रामलाल रौतेल पूर्व विधायक, प्रमुख वक्ता वरिष्ठ समाजसेवी सुरेंद्र भदौरिया, पूर्व पार्षद अरुण सिंह, जन अभियान परिषद के जिला समन्वयक उमेश पाण्डेय, विकासखण्ड समन्वयक फते सिंह सहित प्रस्फुटन समिति सदस्य, नवांकुर समिति सदस्य, परामर्शदाता, कोरोना वालेंटियर, स्वेच्छिक संगठन प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे। सर्वप्रथम पंडित दीनदयाल के चित्र पर माल्यार्पण कर उनके समक्ष दीप प्रज्ज्वलित एवं पुष्प अर्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। तत्पष्चात आमंत्रित अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। पूर्व पार्षद अरुण सिंह, परामर्शदाता मोहम्मद नजीर खान व जिला समन्वयक जन अभियान परिषद उमेश पाण्डेय द्वारा पंडित के जीवन दर्शन पर प्रकाश डालते हुए कहा गया कि सुविधाओं में पलकर कोई भी सफलता पा सकता है, पर अभावों के बीच रहकर शिखर को छूना बहुत कठिन है। 25 सितम्बर, 1916 को जयपुर से अजमेर मार्ग पर स्थित ग्राम धनकिया में अपने नाना पण्डित चुन्नीलाल शुक्ल के घर जन्मे दीनदयाल उपाध्याय ऐसी ही विभूति थे। दीनदयाल के माता-पिता का बचपन में देहान्त हो गया। कुशाग्र बुद्धि होने से ये सदा प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होते थे। कठिन परिस्थितियों के बाद भी उन्हो्ंने हार नहीं मानकर अपने जीवन को उच्च्तम शिखर तक पहुंचाया। कार्यक्रम के अध्यक्ष समाजसेवी सुरेंद्र भदौरिया ने कहा कि दीनदयाल जी के पिता भगवती प्रसाद ग्राम नगला चन्द्रभान, जिला मथुरा, उत्तर प्रदेश के निवासी थे। तीन वर्ष की अवस्था में ही उनके पिताजी का तथा आठ वर्ष की अवस्था में माताजी का देहान्त हो गया। अतः दीनदयाल का पालन रेलवे में कार्यरत उनके मामा ने किया। ये सदा प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होते थे। कक्षा आठ में उन्होंने अलवर बोर्ड, मैट्रिक में अजमेर बोर्ड तथा इण्टर में पिलानी में सर्वाधिक अंक पाये थे। 14 वर्ष की आयु में इनके छोटे भाई शिवदयाल का देहान्त हो गया। 1939 में उन्होंने सनातन धर्म कालिज, कानपुर से प्रथम श्रेणी में बी.ए. पास किया। यहीं उनका सम्पर्क भाऊराव देवरस से हुआ। एम.ए. करने के लिए वे आगरा आये, पर घरेलू परिस्थितियों के कारण एम.ए. पूरा नहीं कर पाये। प्रयाग से इन्होंने एल. टी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। अपनी मामी के आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी। उसमें भी वे प्रथम रहे। वे एक कुशल संगठक, वक्ता, लेखक, पत्रकार और चिन्तक भी थे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रामलाल रौतेल ने बताया कि 1967 में कालीकट अधिवेशन में वे सर्वसम्मति से अध्यक्ष बनायेे गये। चारों ओर दीनदयाल जी के नाम की धूम मच गयी। यह देखकर विरोधियों के दिल फटने लगे। 11 फरवरी, 1968 को वे लखनऊ से पटना जा रहे थे। रास्ते में किसी ने उनकी हत्या कर मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर लाश नीचे फेंक दी। इस प्रकार एक मनीषी का निधन हो गया। पंडित दीनदयाल उपाध्या्य जी ने अंत्योदय, एकात्मा और मानववाद की विचारधारा को भारत देश के वासियों के हित में लागू कराने का कार्य किया। जिसका उदाहरण शासन द्वारा चलाई जा रही दीनदयाल अन्त्योदय योजना और आयुष्मान भारत जैसी अनेकों योजनाएं हैं जिनका उद्देश्य समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति को आगे आने एवं अपने जीवन स्तर को उंचा उठाने में सहयोग दिया जाना है। महान विभूति की जन्म जयंती पर कोटि कोटि नमन। कार्यक्रम में उपस्थित स्वेच्छिक संगठनों के प्रतिनिधि श्री दिलीप शर्मा, रश्मि खरे, मोहनलाल पटेल, विद्यानंद शुक्ला, परवेंड सिंह, राजकमल, धीरेंद्र द्विवेदी, परामर्शदाता वर्षारानी सिंह, शिवानी सिंह, पार्वती बर्मन, संतराम नापित, कोरोना वालेंटियर अनिल मिश्रा मोहन सिंह, दिनेश विष्वकर्मा, दुर्गादत्त तिवारी आदि सहित कई प्रस्फुटन, नवांकुर समिति सदस्य उपस्थित रहे। कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन विकासखण्ड समन्वयक फते सिंह जी के द्वारा किया गया व कार्यक्रम का संचालन जिला समन्वयक उमेश पाण्डेय द्वारा किया गया।

 

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